Book Title: Jain Darshan Me Panch Parmeshthi
Author(s): Jagmahendra Sinh Rana
Publisher: Nirmal Publications

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Page 267
________________ साधु परमेष्ठी 231 साधु का भोजन-परिमाण : _मुनि को एक बार भोजन करना विहित है। उसे मात्रज्ञ--भोजन की मात्रा को जानने वाला होना चाहिए। शास्त्र में बतलाया गया है कि साधु को अपनाआधा पेट भोजन चाहिए और एक चौथाई जल से तथा एक चौथाई गयु के लिए बचाकर रखना चाहिए। भोजन का भी परिमाण साधु के लिए 32 ग्रास तथा साध्वी के लिए 28 ग्रास बतलाया गया है। साधु का भोजन समय : साधु को समय पर ही भोजन करना चाहिए / सूर्योदय से तीन घटिका पश्चात् और सूर्यास्त से तीन घटिका पूर्व साधु का भोजन करने का समय है। तीन मुहूर्त में भोजन करना जघन्य आचरण है, दो मुहूर्त में भोजन करना मध् यम आचरण है और एक मुहूर्त में भोजन कर लेना उत्कृष्ट आचरण होता हैं। मुनि के लिए सूर्यास्त से लेकर पुनः प्रातःकाल तक सब प्रकार का आहार करना सर्वथा वर्जित है। इसीलिए रात्रिभोजन विरमण को छठामहाव्रत माना गया है। इस प्रकार हम देखते हैं कि साधु की भिक्षाचर्या एक कठिन कार्य है ।जो साधु इसमें खरा उतरता है, वही सच्चे अर्थों में साधु है। इस तरह आहारचर्या करता हुआ वह संयम की विराधना न करके अपने साधना-गार्ग में सफलता प्राप्त करता है। मुनि की सामान्य चर्या में कुछ और भी बातें हैं जिनका उसे विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। साधु के बैठने,खड़े होने एवं बोलने की भी एक विशेष प्रकार की विधि बतलायी गयी है। 1. एगभत्तं च भोयणं / दश० 6.22 2. मायन्ने असण-पाणस्सा उ०२.३ 3. अद्धमसणस्स सव्विंजणस्स उदरस्स तदियमुदयेण। बाउ संचरणळं चउत्थंमवसेसये भिक्खू।। मूला० 6.461 4. भग० आo, गा०२१३ 5. ध्यान रखना चाहिए कि दिगम्बर मुनि विकालभोजन नहीं करते। दूसरे वह एक बार ही दिन में आहार लेते हैं। आहारे के बाद उनका सब कुछ का त्याग हो जाता है यहां तक कि वह पानी भी ग्रहण नहीं करते। 6. सूरुदयस्थमणादो णालीतिय वज्जिदे असणकाले। तिगदुगएगमुहुत्ते जहण्णमज्झिम्ममुक्कस्से।। मूला० 6.462 7. दश०८.२५ 8. वही, 4.17 (गद्य)

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