________________ 234 जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी इस प्रकार कहना वर्तमानकालिक शंकित भाषा है। इसी प्रकार बैल देखा गया या गाय', इसकी ठीक स्मृति न होते हुए भी ऐसा कहे कि 'मैंने गाय देखी थी' यह अतीत कालीन शंकित भाषा है। किसी स्त्री को दादी, नानी, मां, मौसी, भानजी आदि स्नेहसूचक शब्दों से सम्बोधित न करे, बल्कि उनकी अवस्था, वेश, ऐश्वर्य आदि की अपेक्षा गुण-दोष का विचार करके उनके मूल नाम या गोत्र से सम्बोधित करे।' इसी प्रकार किसी पुरुष को दादा, नाना, चाचा, मामा पोता आदि शब्दों से सम्बोधित न करे, बल्कि उन्हें नाम या गोत्र से ही सम्बोधित करना चाहिए। वृक्ष आदि को देखकर यह मकान की लकड़ी के लिए, पात्र के लिए, कृषि के उपकरणों के लिए या शयनासन के लिए उपयोगी है, ऐसा न कहे / ' फल या धान्य पके हैं या कच्चे हैं, तोड़ने योग्य हैं या नहीं, फली नीली है या सूखी इत्यादि सावध भाषा का प्रयोग न करे। साधु को मृत-भोज, पितर-भोज या विवाह इत्यादि के अवसर पर दिया जाने वाला सामूहिक भोज करणीय है, चोर वध्य है, नदी के घाट सुन्दर हैं, ऐसा भी नहीं कहना चाहिए। यदि प्रयोजनवश कहना ही हो तो सामूहिक भोज को सामूहिक भोज है, चोरकोधनार्थी है और नदी के घाट समान हैं-ऐसा ही उसे बोलना चाहिए। _भोजन के सम्बन्ध में 'बहुत अच्छा पकाया है,''बहुत अच्छा छेदा है, 'बहुत अच्छा रस निष्पन्न हुआ है, 'बहुत ही इष्ट है' इत्यादि प्रशंसा-वाचक शब्दों का प्रयोग न करे। वस्तुओं के क्रय-विक्रय की चर्चा भी न करे। इससे सांसारिक कार्यों में लिप्तता बढ़ती है ।अमुक कीजय हो,अमुक की नहीं-ऐसा न कहे। इससे राग-द्वेष बढ़ता है तथा दूसरे के मन को पीड़ा भी होती है। __ अपनी या दूसरों की भौतिक सुख-सुविधा के लिए प्रतिकूल स्थिति के न होने और अनुकूल स्थिति के होने की बात न कहे, इससे भी वीतरागता में बाधा आती है / मेघ, आकाश और मनुष्य को देव न कहे,१° उन्हें देव कहने से 1. दश० 7.15-17 2. वही, 7.18-20 3. वही, 7.27-26 4. वही, 7.32-35 5. वही, 7.36-37 6. वही,७.४१ 7. वही, 7.43, 45,46 8. वही 7.50 6. वही, 7.51 10. वही,७.५२-५३