Book Title: Jain Darshan Me Panch Parmeshthi
Author(s): Jagmahendra Sinh Rana
Publisher: Nirmal Publications

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Page 269
________________ साधु परमेष्ठी 233 लाने के मार्गऔर बीज एवं हरियाली वालीजगह पर खड़ानहो / अर्गला-भित्ति, द्वार या किवाड़ का सहारा लेकर भी खड़ा न हो। ऐसा करने पर लघुता प्रकट होती है तथा चोट लगने का भी भय रहता है। यदि किसी घर के आगे वनीपक आदि याचक खड़े हों तो मुनि उनको या गृहस्वामी को दिखाई न दे, उनके सामने जाकर खड़ा न होवे, एकान्त में जाकर खड़ा हो जाए कारण कि ऐसा न करने पर सामने खड़े वनीपकों अथवा गृहस्वामी को क्रोध आ सकता है अथवा उन वनीपकों को कम भोजन भी दिया जा सकता है, जो दुःख व हिंसा का हेतु बन सकता है और जैन सन्त को हिंसा वर्जित है। (स) वाक्-शुद्धि : मुनि के लिए वाक-शुद्धि पर भी विशेष बल दिया गया है। मुनि को चार प्रकार की भाषाएं नहीं बोलनी चाहिएं--१. अवक्तव्य-सत्य-भाषा, 2. सत्य-असत्यभाषा, 3. असत्य भाषा और 4. वृद्धों द्वारा अनाचीर्ण भाषा। काने को काना, नपुंसक को नपुंसक, रोगी को रोगी तथा चोर को चोर न कहें। इस प्रकार की यह भाषा अवक्तव्य-सत्य भाषा है जोकि कठोर भाषा है एवं भूतोपघात करने वाली है। सत्य-असत्यभाषा से अभिप्राय है-संदिग्ध भाषा |आशय को छिपाकर जैसे 'अश्वत्थामा हतः' इस प्रकार की संदिग्ध भाषा का प्रयोग वर्जनीय है। मुनि सत्य दिखलाई देने वालीअसत्य वस्तु काआश्रय लेकर--पुरुष वेषधरी स्त्री को पुरुष कहकर न बोले / यह सत्य भाषा का अनाचीर्ण रूप हे। इस प्रकार की भाषा बोलने से मुनि पाप का स्पर्श ही करता है। अतः साक्षात् झूठ तो बिल्कुल ही न बोले। ___ जो भाषा भविष्य-सम्बन्धी होने के कारण शंकित हो अथवा वर्तमान और अतीतकाल-सम्बन्धी अर्थ के बारे में शंकित हो, संयमी मुनि उसे न बोले / जैसे-'हम जाऐंगे', 'हमारा अमुक कार्य हो जाएगा', इस प्रकार की भाषा न बोले। निश्चित जानकारी के अभाव में 'अमुक वस्तुअमुक की है। 1. वही, 5.1.26 2. वही. 5.2.6 3. वही, 5.2.11 4. दश०७.२ 5. वही.७.१२ 6. वही, 7.11 7. वही,७.५ 8. वही,७.६-६

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