________________ साधु परमेष्ठी 227 मुनि के प्रति अप्रीति और अविश्वास उत्पन्न न हो। 9. भिक्षा ग्रहण करते समय मुनि भैक्ष्य-पदार्थ तक ही दृष्टिप्रसार कर-अतिदूर न देखे।' दूर के कोनों इत्यादि को देखने से उसके चोरं या पारदारिक होने की आशंका हो सकती है। __10. उत्फुल्ल अर्थात् औत्सुक्यपूर्ण दृष्टि से नदेखें क्योंकि स्त्री अथवा घर के सामान को इस प्रकार देखने से मुनि के प्रति लघुता का भाव उत्पन्न हो सकता है। लोग यह सोच सकते हैं कि मुनि वासनाग्रस्त है। 11.भिक्षा के लिए गया हुआ मुनि कहीं न बैठे, खड़ा रहकर भी कथा का प्रबन्ध न करे। गृहस्थों के पास बैठने या खड़े-खड़े बात करने पर भी मुनि गृहस्थ-सम्बन्धी व्यर्थ की जानकारी में पड़ जाता है, इससे उस प्रकार के कार्यों में आसक्ति बढ़ती है और भिक्षाचर्या के समय का भी अतिक्रमण हो सकता है। 12.भक्त-पान के लिए घरों में जाते हुए मुनि किसी अन्य श्रमण, ब्राह्मण या वनीपक इत्यादि को लांघकर घर में प्रवेश न करे / ऐसा करने पर उस श्रमण आदि को या गृहस्थ को अथवा दोनों को नाराजगी हो सकती है तथा इससे जैन शासन की लघुता भी प्रकट होती है।' 13. गृहपति कीआज्ञा लिए बिनाप्रावार से आच्छादित द्वार को खोलकर भी उसे भोजन लेने के लिए अन्दर नहीं जाना चाहिए। ऐसा करने पर वह अप्रिय लगता है तथा अविश्वास का पात्र भी बन सकता है। ___ 14. मुनि इस बात का भीध्यान रखे कि यदि वर्षा हो रही हो, कुहरा गिर रहा हो, जोरदार हवा चल रही हो या मार्ग में तिर्यक् सम्पातिम जीव छा रहे हों तो भिक्षा लेने न जाए। इस प्रकार के मौसम में बाहर जाने से धूल आदि आंखों में गिर सकती है तथा प्राणि-हिंसा का दोष भी हो सकता है। उत्तराध्ययनसूत्र में भिक्षार्थ जाने के लिए दूरी का भी संकेत मिलता है। सामान्यतः उसी गांव में भिक्षार्थ जाया जाता है परन्तु आवश्यकता पड़ने 1. नाइदूरावलोयए / वही, 5.1.23 2. उत्फुल्लं न विणिज्झाए / वही 3. दश०५२.८ 4. वही. 5.2.10-12 5. वही,५.११८ 6. जो जीव तिरछे उड़ते हैं वे तिर्यक् सम्पातिम जीव कहलाते हैं, जैसे भ्रमर, कीट, पतंग आदि। दे०-वही, टिप्पण, 5.1938 7. वही, 5.1.8