________________ 228 * जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी पर दूसरे गांव में भी आधा योजन की दूरी तक जाया जा सकता है।' इस प्रकार भिक्षार्थ जाते समय मुनि को कई प्रकार की सावधानियां रखनी पड़ती है जिनके अभाव में संयम की विराधना तो होती ही है साथ ही वह समाज की दृष्टि से गिर जाता है, अपमानित होता है। कैसी भिक्षा ग्राह्य है? ___ साधु दूर से उसके सम्मुख लाया हुआ भोजन न लेवे। यदि कोई भोजन आदि को गिराते हुए भिक्षा दे तो उसे भी ग्रहण न करे / प्राणि, बीज और हरियाली को कुचलते हुए यदिभोजन दिया जाए अथवा सचित का संघट्टन कर दिया जाए तब भी आहार ग्रहण वर्जित है। गर्भवती स्त्री के लिए विशेष रूप से बनाया हुआ भोजन भी उसे नहीं लेना चाहिए, यदि ऐसी स्त्री के खाने से बचा हुआ भोजन है तो वह आहार लिया जा सकता है। बालक या बालिका को स्तनपान कराती हुई स्त्री यदि उसे रोते हुए छोड़कर भिक्षा देवे तब वह भी ग्राह्य नहीं है कारण कि इससे बालक को कष्ट होता है जिससे मुनि को हिंसा का दोष लगता है। साधु को दान, पुण्य अथवा भिखारियों के निमित्त बनाया हुआ भोजन नहीं लेना चाहिए। उसे मालापहृत भोजन भी नहीं लेना चाहिए। मालापहृत भोजन तीन प्रकार का होता है-1.ऊपर से उतारा हुआ,2.भूमिगृह (तहखाना) से लाया हुआ,3. तिरछे बर्तन या कोठे आदि से झुककर निकाला हुआ। ऐसा भोजन लेते हुए जीव हिंसा हो सकती है तथा दाता को चोट भी लग सकती है। पुष्प, बीज और हरियाली से उन्मिश्र तथा पानी या अग्नि पर रखा हुआ भोजन भी नहीं लेना चाहिए। चूल्हे में ईन्धन डालकर, निकाल कर, चूल्हे को सुलगा कर या बुझा कर भिक्षा दी जाए तब भी नहीं लेनी चाहिए ।अग्नि पर रखे हुए पात्र से निकाल कर, छींटा देकर, चूल्हे पर रखे पात्र को टेढ़ा कर अथवा नीचे उतार कर दिया जाने वाला आहार भी साधु को नहीं लेना चाहिए। इन सभी में सचित के सेवन का दोष लगता है। 1. परमद्धजोयणाओ विहारं विहरए मुणी। उ० 26.36 2. दश० 3.2 3. वही, 5.1.28 4. वही. 5.1.26-31 5. वही. 5.1.36 6. वही, 5.1.42 7. वही, 5.1.47-52 8. वही, 5.1.67-66 6. दे०-दश०.टिप्पणं, 5.1.177 10. वही, :.1.57-64