________________ आचार्य - परमेष्ठी 135 अत्यन्त गहन अन्धकार में स्पर्शन इन्द्रिय से स्पर्श सामान्य का ज्ञान होने पर भी' यह स्पर्श कैसा है ?-' 'किसका है' ? इस प्रकार की जिज्ञासा होना ही ईहामति सम्पदा है। (ग) अवायमतिसम्दा: सामान्य ज्ञान के अनन्तर उस पदार्थ के गुण और दोष की विचारणा कर उसके निश्चय का निर्धारण करना हीअवायमति सम्पदा है। अभिप्राय यह है कि ईहा से ग्रहण की हुई वस्तु के विषय में तत्काल एक निर्णय पर आ जाना जैसे यह साँप का स्पर्श है अथवा कमलनाल का? ऐसी विचारणा में शीतलता आदि गुणों के कारण यह 'कमलनाल काही स्पर्श है' इस प्रकार तुरन्त निश्चय कर लेना ही अवायमतिसम्पदा है। (घ) धारणामतिसम्दा: निश्चित किए हुए वस्तु बोध के पश्चात् उसे ऐसी दृढ़ता के साथधारण करना कि दीर्धकाल तक उसका विस्मरण न हो तथा समयानुसार उसका तत्काल स्मरण हो जाए, यह धारणामति सम्पदा है। / इस प्रकार उक्त चार प्रकार की मतिसम्पदा से आचार्य को उत्तरोत्तर विशिष्ट बोध-लाभ होता है। 7. प्रयोगसम्पदा : प्रयोग से अभिप्राय है आत्म-सामर्थ्य अथवा कुशलता। द्रव्य, क्षेत्र, कालऔरभाव को जानकर वादआदिके करने वाली सम्पदा ही प्रयोग-सम्पदा है। यह भी चार प्रकार की बतलायी गई है' (क) आत्मशक्तिज्ञान पूर्वकवादप्रयोग : मेरी वाद-विवाद की कितनी शक्ति है, मैं अमुक विषय में वाद-विवाद करने पर जीत सकता हूं अथवा नहीं ? इस प्रकार जानकर वाद का प्रयोग करना आत्मशक्तिज्ञानपूर्वक वाद प्रयोग है। (ख) परिषद्ज्ञानपूर्वकवादप्रयोग : यह परिषद् जानकार है, अजानकार है अथवा दुर्विदग्ध है, तथा यह सभा बौद्ध है, सांख्य है अथवा चार्वाक-मतानुयायी है, ऐसा जानकार वाद करना, यह परिषद् ज्ञानपूर्वक वादप्रयोग है। (ग) क्षेत्रज्ञानपूर्वकवाद प्रयोग : इस क्षेत्र में आर्य लोग रहते हैं या अनार्य लोग?अथवा इस क्षेत्र में रहने 1. पओगसंपया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा-१.आयं विदाय वायं पउंजित्ता भवइ, 2. परिसं विदाय वायं पउंजित्ता भवइ. 3. खेत्तं विदाय वायं पउंजित्ता भवइ, ४.वत्थु विदाय वायं पउंजित्त भवइ / से तं पओगसंपया | दशा०४.७