________________ उपाध्याय परमेष्ठी 179 (अ) अमनोज्ञ संप्रयोग: अप्रिय वस्तु के प्राप्त होने पर उसके वियोग के लिए सतत चिंतन करना। शेर या शत्रु इत्यादि के संयोग से इस प्रकार का ध्यान होता है। (आ) वेदना चिन्तन : उदर पीड़ा आदि वेदना के होने पर उसके दूर करने के लिए सतत चिन्ता करना। (इ) मनोज्ञ विप्रयोग: प्रिय वस्तु का वियोग होने पर उसकी प्राप्ति के लिए सतत चिन्ता करना है। जैसे स्त्री, पुत्र आदि का वियोग हो जाने पर उस विषयक चिन्ता का होना। (ज) निदान चिन्तन: ____ भोगों की लालसा की उत्कटता के कारण अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति के लिए संकल्प करना या सतत चिन्ता करना। प्रथम पांच गुणस्थानावर्ती जीवों के चारों प्रकार का आर्तध्यान होता है लेकिन छठे गुणस्थानवर्ती मुनि के निदान को छोड़कर अन्यतीन आर्तध्यान होते हैं। (2) रौद्रध्यान : रुद्रकूर परिणाम वाले जीव को कहते हैं, उसके द्वारा किया गया कार्य अथवा विचार रौद्रध्यान है। हिंसा झूठ, चोरी और विषय-संरक्षण (विषयों में इन्द्रियों की प्रवृत्ति) इन चार वृत्तियों से रौद्रध्यान होता है। अतः विषय के आधार पर यह चार प्रकार का हो जाता है (अ) हिंसानुबन्धी-हिंसा में सतत प्रवर्तन। (आ) मृषानुबन्धी-झूठ में सतत प्रवर्तन। (इ) स्तेनानुबन्धी-चोरी में सतत प्रवर्तन / (उ) संरक्षणानुबन्धी विषयों के साधनों में सतत प्रवर्तन / 1. आर्तमनोज्ञानां सम्प्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहारः / त० सू० 6.31 2. वेदनायाश्च / त०सू० 6.32 3. विपरीतं मनोज्ञानाम्। वही, 6.33 4.. निदानं च। त०सू०६.३४ 5. दे०-त०वृ० 6.34, पृ०३०८ 6. रुद्रः क्रुराशयः प्राणी, रुद्रस्य कर्म रौद्रं रुदे वा भवं रौद्रम्। वही, 6.28. पृ०३०६ 7. हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयोः / त.सू. 6.36 .