________________ उपाध्याय परमेष्ठी 185 गुणों से सुशोभित होते हैं, निर्मल रहते हैं | उसके ये गुण कभी भी नष्ट नहीं होते / काम्बोजदेशीय कन्थक अश्व जातिमान और वेगवान होने से दोनों प्रकार सेशोभापाता है, उसी प्रकार उपाध्याय स्वाध्याय और प्रवचन से सुशोभित होते हैं / 3- चारणादि-विरुदावलीतुल्य : जैसे चारण-भाट आदि द्वारा की गई विरुदावली (नान्दीघोष) से शूरवीर योद्धा सुशोभित होते हैं, उसी प्रकार उपाध्याय चतुर्विध संघकी गुणोत्कीर्ण रूपविरुदावली से उत्साहित होकर मिथ्यात्व को पराजित करते हुए सुशोभित होते हैं / 4. वृद्धहस्तीसम : जिस प्रकार हथिनियों के समूह से घिरा हुआ वृद्ध हाथी सुशोभित होता है, वैसे ही श्रुतज्ञान की प्रौढता से युक्त उपाध्याय ज्ञानियों के समूह में किसी से पराजितनहोते हुए सुशोभित होते हैं / 5. तीक्ष्णशृंगयुक्त धौरेय वृषभसम : जैसे तीक्ष्ण सींगों वाला, बलिष्ठ कन्थों वाला वृषभ गायों के अधिपति के रूप में सुशोभित होता है, वैसे ही श्रुतज्ञान से बलिष्ठ उपाध्याय मुनियों के समूह में गण के अधिपति के रूप में सुशोभित होते हैं / 6. तीक्ष्णदाढ़युक्तकेसरीसिंहसम : जैसे तीक्ष्ण दाढों से युक्त केसरी सिंह अन्य वनचरों को क्षुब्ध करता हुआ शोभा पाता है, वैसे ही उपाध्यायभीसप्तनय रूपतीक्ष्णदाढों से प्रतिवादियों का मानमर्दन करते हुए सुशोभित होते हैं / 7. शंखचक्रगदायुक्त वासुदेवसम : जिस प्रकार शंख, चक्र एवं गदाइत्यादिकोधारण करते हुएअतुल्य बल वाले वासुदेवसुशोभित होते हैं, उसी प्रकार ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप रत्नत्रय से युक्त एवं सप्तनयरूपीरत्नों केधारक उपाध्याय कर्मरूपीशत्रुओं को पराजित करते हुए सुशोभित होते हैं / ८.चातुरन्तचक्रवर्तीसम :जैसे चातुरन्त चक्रवर्ती चौदह रत्नों से सुशोभित होते हैं, उसी प्रकार उपाध्याय भी 14 पूर्वो की विद्या के ज्ञान से सुशोभित होते हैं। 6. सहस्रनेत्र- देवाधिपति शक्रेन्द्रसम : जैसे सहस्र नेत्रों के