________________ उपाध्याय परमेष्ठी 149 (घ) जिनेश्वर भगवान् द्वारा प्ररूपित द्वादशांग को पंडित पुरुष स्वाध्याय कहते हैं / उस द्वादशांग का वे उपदेश देते हैं, इसलिए वे स्वयं में ही उपाध्याय हैं।' (ङ) उपाध्याय का मुख्य कार्य है--पढ़ना। इसलिए आचार्य शीलाङ्क ने उपाध्याय कोअध्यापक बतलाया है। उपाध्याय श्रमणों को सूत्र-वाचना देते हैं। इसी से आचार्य अभयदेवसूरिने उसको सूत्रदाता कहा है। (च) प्राकृत शैली के अनुसार उपाध्याय को उवज्झाय अथवा उज्झा कहा जाता है। आवयश्यकनियुक्ति में इन दोनों की नियुक्ति बड़े ही सुन्दर ढंग से की गई है'उ' से उपयोग और 'ज्झ' से ध्यान अर्थ लिया गया है। अतः जो उपयोगपूर्वक ध्यान करता है वह उपाध्याय (उज्झा) कहलाता है। दूसरे, “उवज्झाय' शब्द में 'उ' से उपयोग, 'व' से पाप का वर्जन, 'ज्झ' से ध्यान और 'उ' से कर्मों की उदीरणा अर्थ ग्रहण किया गया है अतः जो उपयोग पूर्वक पापको छोड़करध्यान के द्वारा कर्मों का नाश करता है, वह उपाध्याय (उवज्झाय) कहलाता है। कालान्तर मेयही उवज्झायशब्द ओज्झा,ओझाअथवा झाके रूप में भी प्रयुक्त हुआ मिलता है। (छ) धवला टीका में चौदह विद्यास्थानों के व्याख्यान करने वालों को उपाध्याय कहा गया है कारण कि उपाध्याय तत्कालीन परमागम के व्याख्यान करने वाले होते हैं और ये ही संग्रह, अनुग्रह आदि 1. बारसंगो जिणक्खाओ, सज्झाओ कहिआ बुहे। तं उवइसंति जम्हा, उवज्झाया तेण वुच्चति / / भग० वृ०प०४ 2. उपाध्यायः अध्यापकः / आचारांगवृत्ति, सू० 276 3. उपाध्यायः सूत्रदाता। स्थानांगवृत्ति, 3.4.323 4. उत्ति उवओगकरणे, ज्झति अझाणस्स होइ णिद्देस एएण हुंति उज्झा एसो अन्नोवि पज्जाओ / / उत्ति उवओगकरणे वत्तिअ पावपरिवज्जणे होइ। झत्ति अझाणस्स कए उत्ति अओसक्कणा कम्मे / / आ०नि०, गा० 1002-3 चोद्दस-पुव्व-महोयहिमाहिगम्म सिव-त्थिओ सिवत्थीणं / सीलंधराण वत्ता होइ मुणी सा उवज्झाओ।। धवला टीका, प्रथम पुस्तक, गा० 32