________________ .33 अरहन्त परमेष्ठी आरम्भ हो जाती हैं / मोहनीय कर्म की शेष प्रकृतियों का उपशम करने वाले उपशमक तथा चय करने वाले क्षपक कहलाते हैं।' 6. अनिवृत्तिबादर गुणस्थान : जिसमें स्थूल कषाय की अनिवृति होती है अर्थात् कषाय थोड़ी मात्रा में रहता है, उसे अनिवृत्तिबादर गुणस्थान कहते हैं। इस अवस्था में आत्मा प्रायः कषाय से निवृत्त हो जाती है। इस अवस्था का नाम अनिवृत्तिकरण भी है। यहां निवृत्ति से अभिप्राय है-भेद तथा करण शब्द का अर्थ है-परिणाम / अतः जिन जीवों के परिणामों में भेद नहीं होता अर्थात प्रतिसमय एक जैसे रहते हैं और जो विमलतर ध्यान रूपी अग्नि शिखा से कर्मवन को भस्म कर देते हैं, वे जीव अनिवृत्तिकरण गुणस्थान वाले कहलाते हैं। 10. सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान : .साम्पराय कषाय का नाम है। जिस प्रकार धुले हुए काषाय वस्त्र में लालिमा सूक्ष्म रह जाती है, उसी प्रकार जो जीव अत्यन्त सूक्ष्म राग एवं लोभ कषाय से युक्त है, उसको सूक्ष्म साम्पराय नामक गुणस्थान वाला कहते हैं। इस स्थान वाला जीव चाहे उपशम श्रेणी का आरोहण करने वाला हो अथवा क्षपक श्रेणी का आरोहण करने वाला हो, वह यथाख्यातचारित्रसे कुछ हीन्यून रहता है क्योंकि उस अवस्था में क्रोध,मान और मायायेतीन कषाय उपशान्त हो जाते, क्षीण हो जाते हैं, केवल सूक्ष्म लोभ के उद्य का ही वेदन होता है। 11. उपशान्तकषाय गुणस्थान : निर्मली फल से युक्त जल की तरह, अथवा शरद् ऋतु में ऊपर से स्वच्छ हो जाने वाले सरोवर के जल की तरह, सम्पूर्ण मोहनीय कर्म के उपशम से उत्पन्न होने वाले निर्मल परिणामों को उपशान्त कषाय गुणस्थान कहते हैं। इस अवस्था में साधक का मोहनीय कर्म पूर्णतया शान्त हो जाता है। 1. तारिसपरिणामट्ठियजीवा हु जिणेहिं गलियतिमिरेहिं। मोहस्सपुब्बकरणा, खवणुवसमणुज्जया भणिया / / वही, गा. 54 2. होति अणियट्ठिणो ते, पडिसमयं जेस्सिमेक्कपरिणामा। विमलयरझाणहुयवहासिहाहिं णिदड्ढकम्मबणा / / वही, गा. 57 3. धुतकोसुंभयवत्थं, होहि जहा सुहमरायसंजुत्तं / एवं सुहमकसाओ, सुहमसरागोति णादब्बो।। वही, गा. 58 4. अणुलोहवेदंतो, जीवो उवसामगो व खवगो वा। सो सुहमसांपराओ, जहखादेणूणओ किंचि।। वही,गा०६० 5. कदकफलजुदजलं वा, सरए सरवाणियं व णिम्मलयं। सयलोवसंतमोहो, उवसंतकसायओ होदि।। वही,गा०६१