________________ 67 अहन्त परमेष्ठी दिया / ये चार यामथे-अहिंसा, सत्य,अचौर्य एवं बहिस्तात् आदान-विरमण (अपरिग्रह)' किन्तु अन्तिम तीर्थकर महावीर ने पांच महाव्रतों की देशना दी थी। उनके पांच महाव्रत हैं-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। पार्श्वनाथ के शिष्य कुतों का सहारा लेकर अब्रह्मचर्य का समर्थन करने लगे थे।अतःभगवान् महावीर ने उसको (ब्रह्मचर्यको) अलग से महाव्रत का स्थान दिया और इस प्रकार महाव्रत पांच हो गए। (इ) मोक्षमार्ग का उपदेश: तीर्थकर मोक्ष-मार्ग का उपदेश देते हैं / वह मोक्षमार्ग हैं-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र / ये तीनों युगपत् मोक्षमार्ग का साधन बतलाया गया है। इस रत्नत्रय की विशुद्धि को ही धर्म भी कहा गया है। (ई) अनेकान्तवादनिरूपण : तीर्थकर अनेकान्तवाद का भी उपदेश देते हैं। आचार्य नेमिचन्द्र ने अरहन्त भगवान् को अनेकान्तवाद का प्रकाशक बतलाया है। प्रत्येक वस्तु अनन्तधर्मात्मक है", उसको प्रमाण और नयों के द्वारा ही समझा जा सकता है। स्याद्वाद" के द्वारा उन अनेक धर्मों का संग्रह करना, समन्वय करना ही अनेकान्त है। इस अनेकान्त को समझ लेने से दृष्टि सम्यक् हो जाती है। 1. ठाणं, 4.136 2. उ०,२१.१२ 3. विस्तार के लिए दे०-(तुलसी). उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृ०१२४ 4. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः / त०सू०१.१ 5. धर्मः पुंसो विशुद्धिःसुदृगवगमचारित्ररूपा-धर्मा०, 1.60 6. अनेकान्तद्योतिनिधिप्रमाणोदारधनुः च / प्रतिष्ठातिलक, 374 7. संति अणांताणंता तीसु वि कालेसु सब-दव्याणि / / कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गा० 224 8. (क) तत्त्वज्ञानं प्रमाणं / आप्त मीमांसा, का० 101 (ख) सम्यग्ज्ञानं प्रमाणम् / आलापपद्धति, / दे० नयचक्र पृ०२१३ 6 प्रमाण के द्वारा जिसका स्वरुप प्रकट है ऐसी अनन्तधर्मात्मक वस्तु के एक देश का जो ज्ञान कराता है वह नय है। नैगम, संग्रह, व्यवहार ऋजुसूत्र,शब्द, समभिरुढ और एवंभूत ये सात नय है। विस्तृत अध्ययन के लिए दे० नयचक तथा त०१० 1.33 10 प्रमाणनयैरधिगमः / त०सू० 1.6 11 स्याद्वादःसर्वथैकान्तत्यागात् किंवृत्तचिद्विधिः / सप्तमंग-नयापेक्षो हेयाऽऽदेय-विशेषकः / / आप्त मीमांसा, का० 104