________________ आचार्य - परमेष्ठी 117 पालन करना अर्थात् धर्माचरण ही परम धर्म है - 'आचारः परमो धर्मः / ' 'ये पाँच आचार पालन किए जाते हैं 2--- (1) ज्ञानाचार : वस्तु के यथार्थ स्वरूप को ग्रहण करने वाले ज्ञान में लगाना ज्ञानाचार है / (२)दर्शनाचार :तत्त्वश्रद्धानरूपपरिणामअर्थात् सम्यक्त्व की शुभ आराधना करना दर्शनाचार है। (3) चारित्राचार :ज्ञान एवं श्रद्धापूर्वक सावद्य योगों का त्याग करना ही चारित्राचार है। (4) तपाचार :इच्छानिरोधरूप अनशन आदि तप का सेवन करना तपाचार है / (5) वीर्याचार :अपनी शक्ति को न छिपाते हुए धर्म-कार्यों में यथाशक्ति मन-वचन एवं काया द्वारा प्रवृत्ति करना वीर्याचार है / (ऊ) पाँच समिति और त्रिगुप्ति सम्पन्न आचार्य : 'सम्' और 'इति' के मेल से समितिशब्द बनता है / सम् अर्थात् सम्यक् और 'इति' गति अथवा प्रवृत्ति का द्योतक है / इस प्रकार आगम में कहे हुए सम्यग् क्रम के अनुसार गमनादि करना समिति है / शास्त्रोक्त विधि से सावधानीपूर्वक क्रियाओं में प्रवृत्ति करने से प्रमादवश होने वाली हिंसा टल जाती है | साधु को जीवनयात्रा के लिए ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेपण एवं उत्सर्ग --- ये पाँच आवश्यक क्रियाएं करनी पड़ती हैं / अतः ये पाँच ही समितियां कही गई हैं / ईर्यासमिति : साधु प्रयोजनवश युगप्रमाण (चार हाथ) भूमि को देखकर, प्राणियों के संरक्षण में सावधान होता हुआ दिन में ऋजु एवं प्रासुक मार्ग से गमन करता है, वह ईर्या समिति है / प्रयोजन से यहाँ शास्त्रश्रवण, तीर्थयात्रा, गुरु-वंदना और भिक्षा ग्रहण आदि अभिप्रेत हैं / प्रासुक का अर्थ है -- जन्तुओं से रहित मार्ग / जिस मार्ग पर हाथी, घोड़ा व गाय आदि का आवागमन आरम्भ हो चुका 1. मनुस्मृति, 1.108 2. तस्मिन्नवस्तुयाथात्म्यग्राहिज्ञाने परिणतिर्ज्ञानाचारः / तत्त्वश्रद्वानपरिणामो दर्शनाचारः / पापक्रियानिवृतिपरिणतिश्चारित्राचारः / अनशनादिक्रियासु वृत्तिस्तपाचारः / / स्वशक्त्यनिगूहनरूपावृतिर्ज्ञानादौ वीर्याचारः / एतेषु पञ्चस्वाचारेषु ये वर्तन्ते परांश्च प्रवर्तयन्ति ते आचार्याः / भग० आ०, गा० टी०,४५, पृ०८६ 3. सम्यक्श्रुतनिरूपितक्रमेणेतिर्गतिवृतिः समितिः ।-धर्मा०, गा० टी०, 4. 166 4. ईर्याभाषणादाननिक्षेपोत्सर्गाः समितयः / / - त० सू० 6.5