________________ आचार्य- परमेष्ठी 107 रक्षा के लिए नौ प्रकार की बाड़ लगाते हैं, वे नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य की गुप्तियों से अपने ब्रह्मचर्य को सुरक्षित रखते हैं / उत्तराध्ययनसूत्र में ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए दस आवश्यक बातों का त्याग अनिवार्य बतलाया गया है / चित्त को एकाग्र करने में इनका विशेष महत्व होने के कारण इन्हें समाधि-स्थान भी कहा गया है / ' ये समाधि स्थान निम्न प्रकार हैं -- (9) स्त्री आदि से संकीर्ण स्थान के सेवन का वर्जन : जिस स्थान में बिल्ली रहती हो, वहांचूहा रहे तो उसकी खैर नहीं, उसी प्रकार स्त्रियों के निवास स्थान के पास ब्रह्मचारी का रहना भी प्रशस्त नहीं है इसलिए वह स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शयन और आसन का सेवन नहीं करता / 3 (2) कामरागयुक्त स्त्री-कथा का वर्जन : कामराग को बढ़ाने वाली स्त्री कथा कहने व सुनने से ब्रह्मचर्य स्थिर नहीं हो सकता / जैसे नींबू, इमली आदि खट्टे पदार्थो का नाम लेते ही मुँह में पानी भर आता है, वैसे ही स्त्री के सौन्दर्य एवं हाव-भावों का वर्णन करने से मन में विकार उत्पन्न होता है / इसलिए ब्रह्मचारी मन में आह्लाद पैदा करने वाली तथा कामराग को बढ़ाने वाली स्त्री-कथा का त्याग करे / ' (3) स्त्रियों का अतिसंगवर्जन : स्त्रियों के साथ एक आसन पर बैठ कर वार्तालाप करने से कामपीड़ा उत्पन्न हो सकती है | अतः ब्रह्मचारी उसके साथ एक आसन पर न बैठे, 5 उसके साथ परिचय इत्यादि न बढ़ाते हुए बार-बार वार्तालाप का सदैव त्याग करे / (4) स्त्रियों के अंगोपांग निरीक्षण वर्जन : स्त्रियों के अंग (मस्तक आदि), प्रत्यंग (कुच, कुक्षि आदि), संस्थान 1. इह खलु थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भचेर समाहिठाणा पन्नत्ता, जो भिक्खू सोच्चा, निसम्म, संजमबहुले, संवरबहुले, समाहिबहुले, गुत्ते, गुत्तिन्दिए, गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते बिहरेज्जा / / वही, 16.1 (गद्य) 2. जहा विरालावसहस्स मूले न मूसगाणं वसही पसत्था / एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे न बम्भययारिस्स खमो निवासो / / उ०३२.१३ 3. नो इत्थी-पसुपण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवइ, से निग्गन्थे / वही, 16.3 (गद्य)। 4. मण पलहायजणणिं कामरागविवणिं / बंभचेररओ भिक्खू थीकहं तु विवज्जए / / वही, 16.2 5. समं च संथवं थीहिं संकहं च अभिक्खणं / / बंभचेररओ भिक्खू निच्चसो परिवज्जए / / वही, 16.3