________________ अरहन्त परमेष्ठी 1. ऋषभनाथ 2. अजितनाथ 3. संभवनाथ 4. अभिनन्दन नाथ 5. सुमतिनाथ 6. पद्मप्रभ 7. सुपार्श्वनाथ 8. चन्द्रप्रभ 6. सुविधिनाथ 10. शीतलनाथ 11. श्रेयांसनाथ 12. वासुपूज्य 13. दिमलनाथ 14. अनन्तनाथ 15. धर्मनाथ 16. शान्तिनाथ 17. कुन्थुनाय 18. अरनाथ 16. मल्लिनाथ 20. मुनिसुव्रतनाथ 21. नमिनाथ 22. अरिष्टनेमि 23. पार्श्वनाथ और 24. वर्द्धन (महावीर) 3 तीर्थकर पद और उसकी प्राप्ति की कारण भावनाएं तथा मीस स्थानक : यह बात पहले ही स्पष्ट हो चुकी हैं कि जो अरहन्त तीर्थ की स्थाप.. करके धर्मोपदेश भी देते हैं-वे तीर्थंकर कहलाते हैं। यहां पर यह शंका सकती है कि 'जब वे कृतकृत्य एवं वीतराम हैं और उन्हें अब कुछ भी करने की इच्छा नहीं रही, तब वे उपदेशभी किस कारण से देते हैं?: शंका का परिहार करते हुए आचार्य उमास्वाति कहते हैं कि "ज्ञानावरण अ आठ कर्मों में एक नामकर्म भी है। उसी का एक भेद तीर्थंकरनामकर्म है .सका यही फल है कि उसके उद होने पर भव्य आत्मा (तीर्थंकर) कृतक होकर भी मोक्षमार्ग का प्रवर्तन करता है जिस कार सूर्य अपने स्वभाव से ही लोक को काशित करता है, एस) प्रकार तीर्थंकर नामकर्म का भी यह स्वभाव है कि उसके उदय से ती::: प्रवर्तन होता है। अतएव उसके उदय के अधीन हुए / 'हंत सूर्य के समाय में तीर्थंकरों की विस्तृत जानकारी के लिए देखिए----- (.संह गौड़). जैन धर्म का सशिन इतिहास, पृ० 18-252, तथा तीर्थंकर बुद्ध और अता पृ० 60-65 2. तीर्थप्रवर्तनफलं यत्प्रोक्तं कर्म तीर्थंकरनाम : तस्योदयात्कृतार्थोऽप्यहस्तीय प्रवर्तयति।। तत्वार्थाधिगमसूत्र, सम्बन का 6