________________ 54 जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी १-गर्भकल्याणकः तीर्थंकर जब भी माता के गर्भ में अवतरित होते है। तब देवता और मुनष्य मिलकर उनके गर्भावतरण का महोत्सव मनाते हैं / ' २-जन्मकल्याणक: जब तीर्थंकर का जन्म होता है, तब स्वर्ग के देव और सौधर्म इन्द्र पृथ्वी पर आकर तीर्थंकर का जन्म कल्याणक महोत्सव मनाते हैं और मेरु पर्वत पर ले जाकर वहां वे उनका जन्माभिषेक करते हैं। 3. दीक्षा कल्याणक: तीर्थंकर के दीक्षाकाल के समीप होने पर देव उनसे प्रव्रज्या लेने की प्रार्थना करते हैं / उनके दीक्षा लेने के पूर्व देव अपार धनराशि उनके कोषागार में लाकर डाल देते हैं जिससे वे दीक्षित भव्य सत्त्व प्रतिदिन एक करोड़ बावन लाख स्वर्ण मुद्राओं का दान करते हैं / दीक्षा के दिन देवराज इन्द्र अपने देवमंडल के साथ आकर उनका अभिनिष्क्रमण महोत्सव मनाते हैं / उन्हें एक विशेष पालकी में आरुढ़ कराकर वनस्थल की ओर ले जाया जाता है, जहां वे अपने वस्त्र और आभूषणों का त्याग कर देते हैं तथा पंचमुष्ठि लोंच करके दीक्षित हो जाते हैं / तीर्थकर होने वाले भव्यसत्त्व स्वयं ही दीक्षित होते हैं, किसी गुरु के समीप वे नहीं जाते / 3 4. कैवल्यकल्याणक : जब वे अपनी कठोर साधना के द्वारा केवलज्ञान प्राप्त कर लेते हैं उस. समय भी देवगण आकर उनका कैवल्य महोत्सव मनाते हैं / वे उस समय केवली तीर्थंकर के लिए एक विशिष्ट समवसरण (धर्मसभा-स्थल) की रचना करते हैं, जिसमें उपस्थित होकर अरहन्त तीर्थकर लोक-कल्याण के लिए धर्ममार्ग का प्रवर्तन करते हैं / ५.निर्वाणकल्याणक: जब वे तीर्थकर समस्त कर्मों का क्षय करके परिनिर्वाण को प्राप्त करते हैं तब भी इन्द्र देवों सहित उनका दाह संस्कार कर परिनिर्वाण महोत्सव मनाते हैं / इन उपर्युक्त पांचों कल्याणकों को विशेष पर्व मानकर जैन लोग उस तिथि को विशिष्ट भक्ति-भावपूर्वक तीर्थंकर की उपासना करते हैं तथा तप, 1. कल्पसूत्र, 15-71 2. वही, 66 3. वही, 110-114 4. वही, 111 5. वही, 124