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कौटिल्य का अर्थशास्त्र
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पुस्तक को लेकर अनेक ग्रन्थों, पुस्तिकाओं का प्रणयन हो चुका है। कुछ के नाम अंग्रेजी में ये हैं- नरेन्द्रनाथ ला की 'स्टडीज इन ऐंश्येण्ट इण्डियन पालिटी', डा० पी० बनर्जी की 'पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन इन ऍश्येष्ट इण्डिया', sto घोषाल की 'हिस्ट्री आफ हिन्दू पोलिटिकल थ्योरीज़', डा० मजुमदार की 'कारपोरेट लाइफ़ इन ऐंश्येष्ट इण्डिया', विनयकुमार सरकार की पोलिटिकल इंस्टीट्यूशंस एग्ड थ्योरीज़ आफ़ दि हिन्दूज', जायसवाल की 'हिन्दू पालिटी', प्रो० एस० वी० विश्वनाथन् की 'इण्टरनेशनल ला इन ऐंश्येण्ट इण्डिया' आदि पुस्तकें। कौटिलीय अर्थशास्त्रसम्बन्धी सभी समस्याओं का विवेचन यहाँ सम्भव नहीं है ।
अर्थशास्त्र पर उपस्थित प्राचीनतम ग्रन्थ कौटिलीय ही है । अर्थशास्त्र एवं धर्मशास्त्र में आदर्श - सम्बन्धी विभेद हैं, किन्तु वास्तव में, अर्थशास्त्र धर्मशास्त्र की एक शाखा है, क्योंकि धर्मशास्त्र में राजा के कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों की चर्चा होती ही है। " कौटिल्य के अर्थशास्त्र में 'धर्मस्थीय' एवं 'कण्टकशोधन' नामक दो प्रकरण हैं, अतः इसका इस पुस्तक में विवेचन होना उचित ही है । 'शौनककृत चरणब्यूह' के मतानुसार अर्थशास्त्र अथर्ववेद का उपवेद है। जैसा कि स्वयं कौटिल्य ने लिखा है; इस शास्त्र का उद्देश्य है पृथिवी के लाभ - पालन के साधनों का उपाय करना । याज्ञवल्क्य एवं नारद स्मृतियों में भी अर्थ एवं धर्म - शास्त्र की चर्चा हुई है। बहुत प्राचीन काल से ही चाणक्य उर्फ कौटिल्य या विष्णुगुप्त अर्थशास्त्र नामक ग्रन्थ के प्रणेता माने जाते रहे हैं । कामन्दक ने अपने नीतिशास्त्र में कौटिल्य ( विष्णुगुप्त ) के अर्थशास्त्र की चर्चा की है। कामदक ने विष्णुगुप्त (कौटिल्य) को अपना गुरु माना है । तन्त्राख्यायिका ने, जो ३०० ई० के लगभग अवश्य लिखी गयी थी, नृपशास्त्र के प्रणेता चाणक्य को प्रणाम किया है। दण्डी ने अपने दशकुमारचरित में लिखा है कि मौर्यराज के लिए छ: सहत्र श्लोकों में विष्णुगुप्त ने दण्डनीति को संक्षिप्त किया ( दशकुमार०, ८) । बाण ने अपनी कादम्बरी ( पृ० १०९) में कौटिल्य के ग्रन्थ को अति नृशंस कहा है । पञ्चतन्त्र ने चाणक्य एवं विष्णुगुप्त को एक ही माना है, और चाणक्य को अर्थशास्त्र का प्रणेता कहा । कौटिल्य का नाम पुराणों में भी अधिकतर आया है। क्षेमेन्द्र एवं सोमदेव की कृतियों से पता चलता है कि गुणाढ्य की वृहत्कथा में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान है । मृच्छकटिक (१.३९ ) ने भी चाणक्य की ओर संकेत किया है। मुद्राराक्षस ( १ ) ने कौटिल्य एवं चाणक्य को एक ही माना है और कहा है कि 'कौटिल्य' शब्द 'कुटिल' (टेढ़ा) से निर्मित हुआ है । उपर्युक्त बातों में से कुछ स्वयं अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत संकेत के रूप में प्राप्त होती हैं। प्रथम अधिकरण के प्रथम अध्याय के अन्त में कौटिल्य इस शास्त्र के प्रणेता कहे गये हैं, द्वितीय अधिकरण के दसवें अध्याय के अन्त में वे राजाओं के लिए शासन-विधि के निर्माता कहे गये हैं । अन्तिम श्लोक बताता है कि उसने, जिसने नन्द के चंगुल में से पृथ्वी की रक्षा की, इस ग्रन्थ का प्रणयन किया। वहीं यह भी आया है कि अर्थशास्त्र के भाष्यकारों की विभिन्न व्याख्याओं को देखकर विष्णुगुप्त ने स्वयं सूत्र एवं भाष्य का प्रणयन किया ।
जाली, कीथ एवं वितरनित्स् ने कौटिल्य को मौर्यमन्त्री की कृति नहीं माना है! यह कथन कि उस व्यक्ति के लिए, जो आदि से अन्त तक एक बृहत् साम्राज्य के निर्माण में लगा रहा, इस पुस्तक का लिखना सम्भव नहीं था, विल्कुल निराधार है। पूछा जा सकता है किं सायण एवं माधव को कैसे इतना समय मिला
७७. 'धर्मशास्त्रान्तर्गतमेव राजनीतिलक्षणमर्थशास्त्रमिदं विवक्षितम्,' मिताक्षरा (याज्ञ० २. २१) । ७८. तस्याः पृथिव्या लाभपालनोपायानां शास्त्रमर्थशास्त्रमिति । कौटिल्य, १५. १ । प्रथम वाक्य हैपृथिव्या लाभ पालने च यावन्त्यर्थशास्त्राणि पूर्वाचार्यैः प्रस्थापितानि प्रायशस्तानि संहृत्यैकमिदमर्थशास्त्रं कृतम ।
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