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शुभाशीष / श्रद्धांजलि
हमारी संस्था के महापुरुष पंडित जी
संस्कृत महाविद्यालय के विद्वान पंडित डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य विशाल संस्कृति के महान व्यक्ति थे । आपकी हम पर शीतल छाया थी। आपके बचन थे जो कार्य निर्मल भावों से किया जाता है। उसमें सबका हित होता है। इस प्रकार से हम देखते हैं कि पंडित जी का पुरुषार्थ चतुष्टय सम्यक दर्शन ज्ञान एवं आचार सिद्ध था। वे महापुरुष थे। ज्ञान और अनुभव से युक्त, तपी हुई वाणी, कुन्दन के सम कांतिमय व्यक्ति थे ।
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
बड़े पंडित जी की विद्वता, वक्तृत्व, त्याग तप आदि बातें बड़ी विख्यात है, उनका स्मरण करना ही हमारी उनकी याद रह गई है ।
माँ भारती के उपासक
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राजकुमार जैन श्री वर्णी भवन मोराजी, सागर
शिखरचंद जैन लम्बरदार वीरपुर वाले, सागर
"श्रेष्ठ विद्या" जीवन का महत्वपूर्ण संस्कार है। राजा तो देश में ही पूजा जाता है परन्तु विद्वान सर्वत्र पूजा जाता है। भौतिकता की चकाचौंध से ग्रसित प्राणी सुख शांति की खोज में चारों गतियों में भटक रहा है । विषयों की अंधी दौड़ में मानव धर्म भी विस्मृत कर चुका है। हमारे सातिशय पुण्य से हमें जिन धर्म जिनवाणी, निर्ग्रन्थ गुरुओं और विद्वानों की सत्संगति का समागम प्राप्त हुआ है। बुंदेलखण्ड की रत्नप्रसवनी वसुधा संतो और विद्वानों की खान रही है ।
भारत के मूर्धन्य विद्वानों की श्रृंखला में पंडित दयाचंद जी साहित्याचार्य एक जगमगाते रत्न है जिन्होंने जीवन भर संस्था की सेवा की और ज्ञान दान दिया । कहा भी है -
परोपकाराय फलन्ति वृक्ष: परोपकारार्य दुहन्ति गाव:
परोपकाराय बहन्ति नद्य: परोपकारार्थ मिदं शरीरम्
पंडित जी यथा नाम तथा गुण सम्पन्न थे सहजता, सरलता सज्जनता उनके रग-रग में समायी हुई थी। वे जीवन भर ज्ञान के प्रचार और प्रसार में लगे रहे। ऐसे मनीषी विद्वान के व्यक्तित्व और कृतित्व के स्मृति ग्रंथ के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ है । आशा ही नहीं अपितु पूरा विश्वास है कि भव्यप्राणी इससे प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सुसंस्कारित करेंगे ।
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