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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ जिन रम्यता क्रिया - वस्त्र आदि सब परिग्रह छोड़कर जिन दीक्षा को प्राप्त करना दिगम्बर रूप धारण करना चाहिए ।
मौन अध्ययन वृत्तित्व क्रिया - दीक्षा ग्रहण करके उपवास किया है और जो पारणा विधि में आहार लेना चाहिए । फिर मौन लेकर अपने गुरु के पास समस्त शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए ।
तीर्थ कृद्भावना क्रिया - समस्त श्रुत ज्ञान का अभ्यास करने के बाद तीर्थंकर पद की भावनाओं का अभ्यास करना चाहिए। सम्यग्दर्शन की विशुद्धि रखना चाहिए सोलह कारण भावनाएँ भानी चाहिए। गुरु स्थानाम्युपगम क्रिया - समस्त विधायें जिसने जान ली हैं जिसने अपने अंत:करण को वश में कर लिया ऐसे साधु का गुरु के अनुग्रह से गुरु का स्थान स्वीकार करना शास्त्र सम्मत है।
गोपग्रहण क्रिया - जो सदाचार का पालन करता है समस्त मुनि संघ के पोषण करने में जो तत्पर रहता है उसको गणोग्रहण क्रिया कहते हैं। आचार्य को चाहिए वह मुनि, आर्यिका श्रावक और श्राविकाओं को समीचीन मार्ग में लगाता हुआ अच्छी तरह संघ का पोषण करें ।
स्व गुरु स्थान संक्रान्ति क्रिया जिसने समस्त विधायें पढ़ ली हैं और उन विधाओं को जानकार उत्तम मुनि जिसका आदर करने योग्य ऐसे शिष्य को बुलाकर उसके लिए अपना भार सौंप दें । निःसङ्गत्वात्म भावना क्रिया - सुयोग्य शिष्य पर समस्त भार सौंपकर ऐसा साधु अकेला बिहार करता हुआ मेरी आत्मा सब प्रकार के परिग्रह से रहित है इस प्रकार की भावना करें । वृत्ति समस्त परिग्रह से रहित है अकेला ही बिहार करता है महा तपस्वी है अपनी आत्मा के सिवा किसी की भी चिंता नहीं करता है । निर्ममत्व भावना में एकाग्र बुद्धि लगाकर चारित्र शुद्धि की धारणा करना चाहिए ।
योग निर्वाण संप्राप्ति क्रिया - सल्लेखना योग्य आचरण करके संवेग पूर्वक ध्यान करना परम तप को धारण करना योग निर्वाण संप्राप्ति है। साधु को संसार के अन्य पदार्थों का चिंतन न करके एक मोक्ष का ही चिंतन करना चाहिए ।
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योग निर्वाण साधन क्रिया - समस्त आहार और शरीर को छोड़ता हुआ योगीराज को योग निर्वाण साधन के लिए उद्यत होना चाहिए ।
इन्द्रोपपाद क्रिया मन, वचन, काय को स्थिर कर जिसने प्राणों का परित्याग किया है ऐसा साधु पुण्य के आगे आगे चलने पर 'इन्द्रोपपाद ' क्रिया को प्राप्त होता है।
इन्द्राभिषेक क्रिया - उपपाद शय्या पर क्षण भर में पूर्ण यौवन हो जाता है पर्याप्तक होते ही जिसे अपने जन्म का ज्ञान हो गया है ऐसे इन्द्र का फिर उत्तम देव लोग इन्द्राभिषेक करते हैं ।
विधि दान क्रिया- नम्रीभूत हुए इन उत्तम उत्तम देवों को अपने - अपने पद पर नियुक्त करता हुआ वह इन्द्र विधिदान क्रिया में प्रवृत्त होता है ।
सुखोदय क्रिया - देवों से घिरा हुआ इन्द्र चिरकाल तक देवों के सुखों का अनुभव करता है।
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