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दिवंगत विद्वानों के जीवन परिचय
निर्जीवा । हमें सिखा दे, सीख स्व पर कल्याण की ॥ " एक अन्य पद्य अत्यंत प्रमाणिक है :
दिशा बदल दोगे यदि अपनी दशा बदल खुद जायेगी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
" संयम नियम प्रतिज्ञा लेना, जैन बिम्ब के सामने । पाप प्रकट कर देना, जो जो किये आत्माराम ने ॥ आलू भटा प्याज छोड़ो, या मत छोड़ो कुछ हानि नहीं । क्रोध - मान- छल- लोभ, छोड़ना, कहा पूर्ण विश्राम ने ॥ एक नया पैसा मत छोड़ों, चर्चा यहाँ न दान की । किन्तु छोड़ दो बुरी नजर को, यही बात है स्यान की ॥ दिशा बदल दोगे यदि अपनी, दशा बदल खुद जावेगी । दृष्टि बदलते ही बदलेगी, सृष्टि चेतनावान की ॥ "
पूज्य प्रात: स्मरणीय मुनिवर श्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज अपने वचनामृतों से यही निर्देश देते है कि यदि मानव अपनी दशा जीवन जीने का ढंग जो कि भौतिकवाद से प्रभावित है बदल दे तो उसकी दशा बदल जायेगी अर्थात् वह आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख हो जायेगा । यही भाव कवि ने प्रसाद गुण के माध्यम से व्यक्त किया ।
भक्तामर स्त्रोत का पद्यानुवाद मंगलगीता के नाम से किया है जिसे पढ़ने में लगभग 1 घण्टा लगा है। प्रारंभ इस प्रकार किया है -
"आदिनाथ के श्रीचरणों में, सादर शीष झुकाता हूँ ।
"
भक्तामर के अभिनंदन की, मंगल गीता गीता हूँ ॥
भगवान महावीर स्वामी के 2500 वें जन्म महोत्सव पर प्रकाशित "वर्धमानशतक" संकलित ग्रन्थ में, पं. पुष्पेन्दु की 4-5 रचनाएँ प्रकाशित हैं।
चिन्तामणि भगवान पार्श्वनाथ की पूजन इस ढंग से लिखी है कि मंदिर में भक्तगण भाव विभोर होकर पढ़ते हैं।
श्री पुष्पेन्दु जी ने इन पक्तियों के मर्म को पूजन में सृजित किया है :
हृदवर्तिनी त्वयि विभो शिथली भवन्ति
जन्तो: क्षणेन निविडामपि कर्म बंधा: ।
जो मानव प्रभु पार्श्व के चरण कमलों को अपने हृदय में स्थापित कर लेता है उसके बंधन वैसे ही शिथिल हो जाते हैं जैसे कि चंदन में लिपटे हुये सर्प के बंधन, मोर को देखते ही शिथिल हो जाते हैं, पूजन इसी भाव से पूरित है। प्रत्येक पद में रसाभिव्यक्ति होती है । स्व. आशुकवि कल्याण कुमार जी शशि तथा पं. पुष्पेन्दु जी एक ही प्रतिभा के दो महान आशुकवि थे ।
उपसंहार
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बहुआयामी काव्य प्रतिभा के धनी स्व. पं. फूलचंद जी "पुष्पेन्दु " की अमर रचनाएँ उनके
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