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दिवंगत विद्वानों के जीवन परिचय
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ कवि अपनी कल्पनाशीलता के कारण ही मानवीय संवेदना से अभिभूत होकर काव्य सृजन करता है , जो विश्व की सांस्कृतिक एवं साहित्यिक धरोहर के रूप में सदियों तक अमर संदेश छोड़ता रहता है इसी परम्परा के पं. पुष्पेन्दु जी एक सफल आशुकवि थे। महावीर श्री चित्र शतक (2500 वें निर्वाण वर्ष पर प्रकाशित) के सफल सम्पादक रहे । सरल पद्यांश रचना आपकी मौलिक विशेषता थी।आपकी सफल लेखनी से तथा आपके अभिन्न स्व. मित्र पं. कमल कुमार जी "कुमुद" के सक्रिय सहयोग से श्री कुंथसागर स्वाध्याय सदन प्रकाशन खुरई की स्थापना हुई थी। दोनों विद्वानों की सफल आजीवन सेवाएँ इस प्रकाशन संस्था को मिलती रही। पं. कुमुद जी तथा पं. पुष्पेन्दु दोनों राम लक्ष्मण की जोड़ी से जाने जाते थे। समाज ने कई बार दोनों विद्वानों का सम्मान किया। कवि पण्डित स्व. सेठ श्रीमंत ऋषभ कुमार जी तथा गुरहा जी ने प्रकाशन में आजीवन सक्रिय सहयोग दिया। कुंथसागर स्वाध्याय सदन खुरई से लगभग 500 ग्रन्थों का सफल प्रकाशन हो चुका है। प्रकाशित रचनाएँ :
___पं. पुष्पेन्दु जी की प्रकाशित पद्य रचनाओं में प्रमुख हैं - (1) अन्थउ का सफल समश्लोकी पद्यानुवाद (2) तीर्थ वन्दना (दृश्य काव्य) (3) भक्तामर स्त्रोत पद्यानुवाद (मंगल गीता) (4) पार्श्वनाथ पूजन (भावातिरेक पूर्ण पूजन) (5) सैकड़ों धार्मिक कविताएँ (6) पद्यपूर्ण अभिनंदन पत्र । काव्यगत मूल्यांकन :
महाकवि "रइधु" के लघुकाव्य "अणत्थमऊ" का सफल समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद नवयुवकों का प्रेरणा स्त्रोत है। 17 वें प्राकृत पद्य का सुन्दर हिन्दी अनुवाद उनकी काव्यगत विशेषता को दर्शाता है यथा
"अन्थऊ की यह कथा सुनेंगे, रूचिपूर्वक जो नरनारी। स्वयं पढ़ेंगे तथा पढ़ावेंगे, औरों को यह प्यारी ॥ मनवांछित फल पाकर क्रमश: वे शिवसुख को भोगेंगे।
रइधू कवि का कथन, मोक्ष के वे अधिकारी होवेंगे।" पं. पुष्पेन्दु जी का "तीर्थवंदना" प्रकाशित दृश्य काव्य है। इसमें 30 मार्च 1967 को श्री गोम्मेटेश्वर -महामस्तकाभिषेक पर खुरई से बस द्वारा की गई खुरई के साधर्मी बंधुओं की तीर्थवंदना का सजीव वर्णन किया गया है। कवि स्वयं साथ थे। संघपति सवाई सिंघई श्री भैयालाल जी गुरहा थे 55 यात्रियों वाली बस का नाम “तीर्थवर्धनी' रखा गया था। इस लघु दृश्य काव्य को पाठक आद्योपान्त पढ़े बिना नहीं छोड़ता है। निर्जीव बस किस प्रकार सजीवों को परोपकार की शिक्षा देती है। यह कवि की विशेषता है, जो दृष्टव्य है :
"सरपट दौड़ी चलो निरंतर रुकने का कुछ काम नहीं। हे अहिंसके । तूने जाना, दुर्घटना का नाम नहीं ॥ तेरी छाती पर हम सबने, मिल मनमानी मूंग दली । स्वयं खूब विश्राम किया, पर दिया तुझे आराम नहीं॥ पचपन जीवों का बोझा था, बात अलग सामान की।
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