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दिवंगत विद्वानों के जीवन परिचय
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ ____ "बीसवीं सदी के दिवंगत सरस्वती पुत्र" साधुमना स्व. पं. दयाचंद्र जी "सिद्धांत शास्त्री" व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व
लेखक - पं. तारा चंद जैन
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सागर प्रारंभिक कथ्य :
__परम हितैषी गुरुणां गुरु स्वनामधन्य, अभीक्षण ज्ञानोययोगी, आदर्शो के आदर्श, अनेक राष्ट्रीय स्तर के प्रतिभा सम्पन्न, देशस्तरीय वर्तमान एवं दिवंगत सरस्वती पुत्रों के गुरु, अत्यंत सरल परिणामी, भव्य एवं आकर्षक सौम्यगुणों से परिपूरित तथा श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय वर्णी भवन मोराजी लक्ष्मीपुरा सागर (म.प्र.) तत्कालीन सत्तर्क सुधातरंगिणी संस्कृत पाठशाला के ही संस्थापक प्रधानाचार्य (प्राचार्य) स्व.पं. दयाचंद्र जी सिद्धांत शास्त्री, "न्यायतीर्थ" का जन्म सागर से लगभग 30 कि.मी. दूर सागर ललितपुर मार्ग के मध्यस्थित "बांदरी" नामक ग्राम में हुआ था। बालक दयाचंद्र का जन्म तत्कालीन व्याप्त अत्यंत गरीबी में हुआ था तथा परिवार में खुशियों का वातावरण था। इनके पिताजी का नाम स्व. श्रीमान कुंजीलाल (फज्जीलाल) था। इनकी मातुश्री का नाम श्रीमती दयाबाई था। इनके बड़े भाई का नाम स्व. श्री साधुराम जैन था। परिवार में छोटी सी किराना की दुकान तथा बंजी (ग्राम-ग्राम जाकर घोड़े पर सामान लादकर बेचकर अनाज, घी लेना) ही मुख्य आजीविका का साधन था। अभाव एवं संघर्षपूर्ण जीवन ने इनकी अग्नि परीक्षा ली तथा सफल रहे । नीतिकारों ने ठीक ही कहा है :
"कष्ट कंटकों में रह कर ही, जिनका जीवन सुमन खिला,
गौरव गंध उन्हें ही उतना यत्र तत्र सर्वत्र मिला।" प्रारंभिक शिक्षण :
अपने बड़े भाई तथा पिताजी के साथ बालक दयाचंद्र सागर में प्रसिद्ध गल्ला आढ़त फर्म श्री सि. कुन्दनलाल जी (अब स्वर्गीय) की पुरानी गल्ला मंडी दुकान आये सि. जी की दृष्टि इस होनहार अत्यंत सुन्दर बालक पर पड़ी। प्रारंभिक जानकारी के बाद होनहार बालक जानकर श्री सि. कुन्दनलाल जी ने पू. गणेश प्रसाद जी वर्णी जी के पास ले जाकर उनकी अनुमति से श्री सत्तर्क सुधातरंगिणी दि. जैन पाठशाला कमरया भवन में नाम लिखाकर शिक्षण लेने प्रवेश किया । यही बालक दयाचन्द्र "सिद्धांतशास्त्री" की धार्मिक परीक्षा मेरिट श्रेणी में उत्तीर्ण कर अब इसी (विद्यालय) पाठशाला में 1 रुपये नगद चाँदी के सिक्के का बजीफा प्राप्त कर कुशल अध्यापक बन गया तथा खुशियों के पारावार में अठखेलियाँ खेलता रहा ।यही बालक से बने पं. दयाचन्द्र सिद्धांत शास्त्री का शिक्षण एवं स्मरणीय अध्यापक काल रहा। सेवाकालीन समर्पण कथ्य :- पं. दयाचन्द्र "सिद्धांत शास्त्री" का विवाह बांदरी ग्राम के ही एक धार्मिक जैन परिवार में श्रीमती गंगाबाई के साथ हुआ। अब पं. जी पर गृहस्थी का दायित्व बढ़ा तथा अन्यत्र सेवा कार्य करने का मन बना तथा विद्यालय कमेटी को आवेदन दिया कि मुझे अब कुछ नये वेतन में अध्यापक
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