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शुभाशीष / श्रद्धांजलि
पं. दयाचंद जी : एक स्मृति
विद्वान समाज की एक अमूल्य धरोहर होते है, उनमें से एक हमारे पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य भी थे, जो आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी अभूतपूर्व ज्ञानमयी वाणी आज भी हम सभी के हृदयों में समायी हुई है - वे यथा नाम तथा गुण की एक स्पष्ट मिशाल थे ।
आज दिन प्रतिदिन समाज में विद्वान पंडितों का अभाव होता जा रहा है, ऐसे समय में पूज्य पं. दयाचंद जी का निधन भी एक अपूर्णनीय क्षति है । समाज में ज्ञान की ज्योति जगाने वाले, धर्म का प्रचार एवं प्रभावना बढ़ाने वालों का अभाव समाज में अधोपतन का कारण बन सकता है। पंडित जी का आचरण सदा ही निम्न श्लोक के अनुरूप रहा है कि
मातृवत पर दारेषु, पर द्रव्येषु लोष्टवत
आत्मवत सर्वभूतेषु यः पश्यतिस: पंडित:
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ऐसे ही अमूल्य गुणों के धारी हमारे पंडित जी थे । और ये संस्कार उनके पैतृक अर्थात माता 1 पिता से प्राप्त थे । जो जीवन भर सदा ही आचरण शील रहकर जीवन का आदर्श बने । शाहपुर ग्राम जिला सागर के भायजी वंश में जन्में पाँच भाईयों में आप तृतीत सुपुत्र थे आपके ज्येष्ठ भ्राता पंडित माणिकचंद समाज में उच्चकोटि के विद्वान, मोराजी संस्कृत महाविद्यालय के प्रथम शिक्षक के रूप में समर्पित रहे, हम ऐसे गुणवान, ज्ञानवान, विद्वान जो जैन धर्म का संदेश देने वाले महान पंडित जी के गुणों का गान करते हुए उनकी स्मृति को हमेशा हृदय में संजोये हुए सदा ही उनके चरणों में नतमस्तक है।
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साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
मेरे अनोखे नाना जी
डॉ. एस.सी. सिंघई., ए. एम. बी. एस. लिंक रोड, सागर
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मुझे अपने नाना जी पर गर्व था कि मेरे नाना जी सुख शांति पूर्ण धर्ममय जीवन बिता रहे थे और दूसरों को भी ऐसी ही शिक्षा दे रहे थे ऐसा धर्ममय जीवन होना कोई सहज बात नहीं है पूर्व पुण्य का ही उदय है जो बड़े शांत परिणामी, सहज स्वाभावी मेरे नाना जी थे, उनकी स्मृति को लेकर हम शुभकामना करते हैं कि यह स्मृति ग्रन्थ हम सबके लिये धर्म का मार्ग प्रशस्त करे ।
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मोनिका, सारिका जैन इंदौर
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