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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ वैदिक धर्म और जैनधर्म का समन्वय
वर्तमान विश्व में अनेक धर्म प्रचलित हैं उन में से एक वैदिक धर्म और एक जैनधर्म अपनी अपनी स्वतंत्र सत्ता रखते हैं। वैदिक धर्म का मूलाधार वेद है, वेद में कथित संस्कार, क्रियाकाण्ड, नियम, भक्तिमार्ग, साहित्य आदि वैदिक धर्म की रूपरेखा है । जैनधर्म का मूलाधार कर्मशत्रुओं को जीतने वाले जिन हैं, उनके द्वारा कहा गया वस्तुत्त्व, आचार,विचार,संस्कार आदि जैनधर्म की रूपरेखा है। दोनों धर्मो में क्या समानता है और क्या असमानता है। इस पर विचार कर लेना आवश्यक है। जैनधर्म में अहिंसा
अहिंसापरमो धर्म: यतो धर्मस्ततो जयः __अर्थात् - अहिंसा सर्वश्रेष्ठ धर्म है और हिंसा सबसे बड़ा पाप है। जहाँ अहिंसा धर्म अच्छी तरह पालन होता है वहाँ सब प्रकार से मानव की विजय होती है। वैदिक धर्म -
अहिंसा परमो धर्मः, तथाऽहिंसा परोदम: ।
अहिंसा परमंज्ञानं, अहिंसा परमं तपः ॥ अर्थात् - अहिंसा सर्वश्रेष्ठ धर्म है, इन्द्रियों के विषयों का दमन करना अहिंसा है, सत्य ज्ञान प्राप्त करना अहिंसा है, परमतप का आचरण करना अहिंसा है। जैनधर्म में दसधर्म -
धर्म:सेव्य: क्षान्ति मृदुत्वमृजुता च शौचमथ सत्यम् ।
आकिं चन्यं ब्रह्म त्यागश्च तपश्च संयमश्चेति ॥ अर्थ - (1) क्षमा (क्रोध न करना), (2) मार्दव (अभिमान न करना), (3) आर्जव (छल कपट न करना), (4) शौच (लोभ न करना), (5) सत्य, (6) संयम (इन्द्रियवशीकरण तथा जीव रक्षण), (7) तप (इच्छा का रोकना, उपवास आदि करना), (8) त्याग (परोपकार अथवा दान करना), (9) आकिंचन्य (वस्तुओं से मोह का त्याग) (10) ब्रह्मचर्य । वैदिक धर्म में दस धर्म - . धृति क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥ (मनुस्मृति) अर्थ- 1. धैर्य , 2 क्षमा, 3 पापों का दमन, 4 अस्तेय (चोरी न करना), 5 शौच (लोभ न करना), 6 इन्द्रियों के विषयों का त्याग, 7 निर्दोष बुद्धि, 8 ज्ञान, 9 सत्य, 10 क्रोध मान आदि का त्याग ये दस धर्म के लक्षण हैं।
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