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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ पूज्य वर्णी जी इस कारण कुछ खिन्न रहे कि समाज या देश, संस्कृत, प्राकृत, नैतिक और सैद्धान्तिक शिक्षा से प्राय: शून्य है, इसलिये सागर (म.प्र.) में एक समय आपने स्वभाषण में कहा था"कोई भी देश या समाज की अपनी सर्वांगीण उन्नति चाहता है तो उसको आवश्यक है कि वह अपने बालकों को पढ़ाये लिखाये ।"(वर्णी जी, पृ. 51)
विश्व के अन्य शिक्षा शास्त्रियों के शिक्षा पर विचार -"बालक में अनेक अवयव एवं शक्तियाँ होती है । 'रूसों शिक्षा के द्वारा इन विभिन्न अवयवों एवं शक्तियों का सम्पूर्ण विकास चाहता है । यह विकास प्रकृति के अनुरूप होना चाहिये । शिक्षा हमें प्रकृति, मानव समाज और वस्तुओं से मिलती है।''-(जांजैक रूसो, जन्म- जिनेवा नगर इटली, 25 जून 1712)
__ "शिक्षा का सम्पूर्ण उद्देश्य एक ही शब्द 'सद्गुण में निहित है। नैतिकता ही शिक्षा की एक और केवल एक समस्या है। शिक्षा के एकमात्र एवं सम्पूर्ण कार्य का सार नैतिकता में निहित है । "(यहाँ नैतिकता का अर्थ है आध्यात्मवाद ) । (मनोविज्ञान का जन्मदाता हरबार्ट, जन्मस्थान- जर्मन, सन् 4 मई 1776)
"शिक्षा मस्तिष्क को अन्तिम सत्य के पाने योग्य बनाती है। वह हमें भूल के बन्धन से मुक्ति दिलाती है और हमें वस्तुनिधि अथवा शक्तिनिधि की अपेक्षा आन्तरिक ज्योति एवं प्रेम प्रदान करती है। वह सत्य को अपना बनाती है और इसे अभिव्यक्ति देती है। “ (गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर, समय सन् 1861- 1941, जन्म कलकत्ता, भारत)।
"मैंने आज तक हिन्दुस्तान को बहुत सी चीजे दी हैं, उन सबमें बुनियादी शिक्षा की यह योजना और पद्धति सबसे बड़ी चीज है तथा मैं नहीं मानता कि इससे अधिक अच्छी चीज मैं देश को दे सकूँगा।" (बुनियादी शिक्षा के प्रणेता महात्मा गाँधी, सन् 1869-1948, कठियावाड़, भारत)।
"बुनियादी शिक्षा केवल यांत्रिक शिक्षा नहीं है , न यह केवल गृह-उद्योगों की शिक्षा है । यह तो सर्वांगीण-बौद्धिक विकास तथा सांस्कृतिक समन्वय की शिक्षा है । बौद्धिक विकास तथा संस्कृति के उच्च आदर्श तक पहुँचना इसका उद्देश्य है । "(काका कालेलकर )
'साक्षर बनो' इस समय यह योजना जो भारत में चल रही है, उसके प्रणेता भी महात्मा गाँधी हैं। इसका लक्ष्य वही है, जो बुनियादी शिक्षा में ऊपर कहा गया है।
उपरिकथित शिक्षाशासत्रियों के शिक्षा-सम्बन्धी विचार, लक्ष्य और शैली, शिक्षा शास्त्री पूज्य वर्णी जी के शिक्षा, विचार और लक्ष्यों के साथ समन्वय रखती है। "सादा जीवन उच्च विचार, ये दोनों उन्नति के द्वार"यह श्री गांधी जी का नैतिक वाक्यार्थ भी श्री वर्णी जी के जीवन में साकार झलकता था।
जिस प्रकार सदाचारी, नैतिक एवं बुद्धिमान पिता और पुत्र से श्रेष्ठ कुल की परम्परा चलती है और उससे धर्म एवं अर्थ पुरुषार्थ की परम्परा अक्षुण्ण रहती है, उसी प्रकार सुयोग्य गुरू और शिष्य के माध्यम से
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