Book Title: Dayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Author(s): Ganesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publisher: Ganesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar

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Page 740
________________ आगमं संबंधी लेख साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ जैन गृहस्थ के संस्कार ऋषभकुमार जैन 'ईशुरवारा' एच-28 शांतिबिहार मकरोनिया, सागर (म.प्र.) संस्कार जीवन की ऐसी पूँजी है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखार कर निर्मल बना देती है और यही निर्मलता उसको निर्निमेष बना देती है। कुछ संस्कार जीव के साथ अनादि से चले आते हैं और कुछ संस्कार जीव अपनी तत्समय की पर्याय में ग्रहण करता है। जैसे शिशु जब जन्म लेता है तो रोना और माँ का दूख पीना उसे कोई सिखाता नहीं है अपितु अनादि संस्कारों के कारण यह क्रिया वह स्वयं करने लग जाता है। दूसरा संस्कार वह है कि शेर का बच्चा पैदा होते ही माँ का दूध पीता है और माँस खाने के संस्कार उसे बाद में दिये जाते हैं। ___ एक उदाहरण से हम संस्कारों के महत्व को समझ सकते हैं । एक राजा ने घोड़े के पारखी के द्वारा मना करने पर भी एक घोड़ा खरीदा और सवारी करके चलकर देखा । घोड़ा थोड़ी दूर जाकर एक नदी मिलने पर उसमें बैठ गया और बहुत देर बाद उठा तब राजा ने घोड़े के मालिक से पूछा कि यह घोड़ा पानी में क्यों बैठ जाता है तो मालिक ने बताया कि इसकी माँ इसके पैदा होते ही मर गई थी इसे भैंस का दूध पिलाकर बड़ा किया है अत: भैंस के दूध के संस्कार इसमें हैं कि यह पानी को देखकर उसमें बैठ जाता है। __इस हृदय स्पर्शी उदाहरण से हमें सम्पूर्ण जीवन को संवारने की शिक्षा मिलती है। हमारा खान-पान, आसपास का वातावरण, संगति, आवासीय भवन, वस्त्र एवं प्राकृतिक परिवेश भी हमारे जीवन को प्रभावित करता है हमारा दायित्व है कि हम ऐसे खान-पान संगति और वातावरण से सदा दूर रहें जो हमारे जीवन को कलंकित कर दें। हमारे आचार्यों ने इस मनुष्य जीवन को बड़ा ही महत्वपूर्ण और दुर्लभ बताया है ।इसको गर्भ से लेकर मृत्यु तक संस्कारित करने की आवश्यकता पड़ती है ।जिनसेन आचार्य ने आदि पुराण में गर्भाधान से मृत्यु तक संस्कारित करने की कला बताई है। जीवन को संस्कारित करने की गर्भान्वय दीक्षान्वय क्रिया एवं कर्तव्य क्रिया आचार्यो द्वारा बनाई गई है। गर्भान्वय क्रियाएँ, तिरेपन हैं ,दीक्षान्वय क्रियाएँ अड़तालीस हैं एवं कर्तव्य क्रिया सात प्रकार की है। जीवन को संस्कारित करने के लिए एवं सर्वसाधारण की जानकारी के लिए सभी क्रियाओं का संक्षेप में विवरण दिया जाना प्रासंगिक होगा। गर्भान्वय क्रियाएँ : आधान क्रिया - चौथे स्नान के शुद्ध होने के बाद स्त्री को आगे करके गर्भाधान के पहले अर्हन्तदेव की पूजा के द्वारा मन्त्र पूर्वक जो संस्कार किया जाता है उसे आधान क्रिया कहते हैं । स्त्री पुरुष को विषयों की आशा छोड़कर केवल संतान उत्पन्न करने की भावना से समागम करना चाहिए। -637 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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