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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ विश्व के कतिपय महान् शिक्षाशास्त्रियों के विचार
"जीव का उद्देश्य आनन्द प्राप्ति है, बालक अपने अंगों, ज्ञानेन्द्रियों तथा शक्तियों के संचालन में आनन्द पाता है, अत: शिक्षा का यह लक्ष्य नहीं है कि बालक को पढ़ने-लिखने में लगा दिया जाय, अपितु उसके सभी प्राकृतिक कार्यो में सहयोग देकर उसकी विभिन्न शक्तियों का विकास किया जाना चाहिये ।'(महान् प्रकृतिवादी रूसो)
"शिक्षा का अन्तिम लक्ष्य न तो विद्यालयों की प्राप्तियों को पूर्णता पर पहुंचाना है और न अन्धी आज्ञाकारिता एवं मेहनत की आदतों को अर्जित करना है। अपितु जीवन की उपयुक्तता व स्वाध्यायी कार्यो की तैयारी है ।'' (हेनरिक पेस्टालॉजी, देश- स्विट्जरलैण्ड, जन्म सन् 174)
"मानवता अपनी समस्याओं को, जिनमें शान्ति और एकता प्रमुख है, उसी समय हल कर सकती है जब उसका ध्यान और समस्त शक्तियाँ 'बालक की खोज' और मानवीय व्यक्तित्व की असीम संभावनाओं के विकास में लग जायेंगी।"
"वास्तव में हमारी पाठशालायें आजन्म दण्ड प्राप्त बालकों के लिये क्रूरतापूर्ण बालसुधार बन्दीगृहों के अतिरिक्त और कुछ नहीं है ।" (महान् शिक्षाशास्त्री मारिया-माण्टेसरी, देश इटली, समय 1870-1952)
इन सम्पूर्ण शिक्षाशास्त्रियों के अभिप्राय आध्यात्मिक शिक्षाप्रणाली के अन्तर्गत हो जाते हैं, जो वर्णी जी का लक्ष्य था :
"सबसे प्रथम कर्तव्य है शिक्षा बढ़ाना देश में । शिक्षा बिना ही पड़ रहे हैं आज हम सब क्लेश में ॥ शिक्षा बिना कोई कभी बनता नहीं सत्यपात्र है । शिक्षा बिना कल्याण की आशा दुराशामात्र है ॥"
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