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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ राजकीर्ति भट्टारक प्रणीत प्रतिष्ठादर्श ग्रंथ भी देखने में आये, जो संक्षिप्त और सामान्यत: प्रतिष्ठा प्रकरण की साकारता में लिखित परम्परागत निर्देशों से युक्त हैं।
इन वर्णित सभी आचार्य ने प्रतिमा और उसकी रचना संस्कार और शुद्धि के जो निर्देश मंत्र और आराधन विधियाँ वर्णित की हैं, उनसे प्रतिमा प्रतिष्ठा की पर्याप्त जानकारी प्राप्त हो जाती है।
प्रतिमा प्रतिष्ठा के लिए आवश्यक है कि प्रतिमा सर्वांग सुन्दर और शुद्ध होना चाहिए । शुद्ध से तात्पर्य यदि पाषाण की प्रतिमा है तो एक ही पत्थर में जिसमें कहीं जोड़ न हो, पत्थर में चटक, दराज, भदरंगता, दाग-धब्बे न हो। साथ ही वीतराग मुद्रा में स्वात्म सुख की जो मुस्कान होती है उसकी झलक मुख मुद्रा पर होना आवश्यक है इसी को वीतराग मुस्कान कहते है । मुस्कान के दो रूप होते है। एक इन्द्रिय जन्य सुख से जो मुस्कान आती है उसमें ओंठों का फैलना, खुलना या ऊपर उठना होता है। लेकिन आत्मोपलब्धि या आत्मगुणों के अभ्युदय में जो अंतर में आत्म आनंद की अनुभूति होती है। उसकी आभा समग्र मुखमण्डल पर व्याप्त होती है। ऐसी मुख मुद्रा के साथ प्रतिमा की दो अवस्थाएँ होती है - प्रथम पद्मासन और दूसरी खड़गासन । ऊपर वर्णित नाप अनुसार निर्मित प्रतिमा की प्रतिष्ठा करना चाहिए। प्रतिमा की संस्कार शुद्धि -
प्रतिमा की प्रतिष्ठा तथा संस्कार शुद्धि के लिए निर्मित वेदी के ईशान कोण में स्थापित करना चाहिए। और 6 प्रकार की शुद्धि का विधान हमारे आचार्यों ने प्रतिपादित किया है उसे सविधि सम्पन्न करें1. आकर प्रोक्षण विधि - सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा तीर्थं मिट्टी से प्रतिमा पर लेप करना । 2. शुद्धि प्रोक्षण विधि - सर्वोषधियों तथा सुगंधित द्रव्यों से युक्त जल से प्रतिमा को शुद्ध करना। 3. गुणारोपण विधि - तीर्थंकर के गुणों का संकल्प करना । 4. मंत्र न्यास - प्रतिमा के विभिन्न अंगों पर चंदन केशर से बीजाक्षरों का लिखना। आचार्यों ने 15 स्थानों
पर बीजाक्षर लिखने का निर्देश किया, लेकिन पं. आशाधर जी ने प्रतिमा में 49 स्थानों पर वर्ण
बीजाक्षरों के लिखने का उल्लेख किया। 5. मुखपट विधि-प्रतिमा के मुख को वस्त्र से ढकना। 6. मंत्रोच्चार विधि - कंकड़, बंधन, काण्डक, स्थापन, नैवेद्य, दीप,धूप, फल, यव, पंचवर्ण,
इशु वलिवर्तिका,स्वर्णकलश, पुष्पांजलि, मुखोद्घाटन, नेत्रोन्मीलन की क्रिया मंत्रोच्चार पूर्वक करने का विधान दिया गया है। इसके बाद पंच कल्याणक रोपण की क्रिया को सम्पन्न करने हुये कर्जन्वयादि की सप्त क्रियाएँ करने के बाद केवलज्ञान प्रगट होता है।
गर्भाधान आदि 16 क्रियाओं के संस्कार के लिए प्रत्येक विधि में पृथक-पृथक यंत्राभिषेक पूजन एवं तद्प विविध मंत्र पाठों का जाप प्रतिमा के समक्ष आवश्यक है ।दीक्षा संस्कार के पूर्व दीक्षान्वय की 48 क्रियाएँ प्रतिमा में संस्कारित करना चाहिए।
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