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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ "मिट्टी पानी, वायु, पेड़-पौधे और जानवर मिलकर पर्यावरण या वातावरण का निर्माण करते हैं। जब एक सीमा से अधिक विकास के लिए प्रकृति का उपयोग किया जाता है तो इस पर्यावरण में कुछ परिवर्तन होता है। यदि इन परिवर्तनों की प्रक्रिया का प्रकृति के साथ सामंजस्य नहीं किया जाता तो उससे ऐसा असंतुलन पैदा हो सकता है जिससे पृथ्वी पर मनुष्य जीवन खतरे में पड़ सकता है यही प्रदूषण है।"
__ आइये पर्यावरण के मूल आधारों और महावीर द्वारा प्रतिपादित अहिंसा के गणित को समझने का
प्रयत्न करें।
वायु
सृष्टि के महाभूत - पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश - पर्यावरण केआधार मिट्टी जल .
वनस्पति तथा क्यप्रणी प्रदूषण के प्रकार मिट्टी जल अग्नि ईधन या तेल वायुया ध्वनि का जंगलों का कटना अहिंसा के रूप पृथ्वीकायिक जल कायिक अग्नि संबंधी वायु संबंधी वनस्पति केविनाशतथात्रस
जीवों की हिंसा जीवों की जीवों की जीवों की जीवों की हिंसा से विरति से विरति हिला से विरति हिंसा से विरति हिंसा से वि.
तथा वाणी
का संयम इस प्रकार स्पष्ट है कि महावीर की अहिंसा से ही इस प्रदूषण रूपी दैत्य से बचा जा सकता है। उक्त विवरण के अनुसार प्रदूषण के मुख्य आधार पृथ्वी, जल, ध्वनि (वायु- आकाश) वनस्पति, वन्यप्राणी आदि हैं महावीर ने भी पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रस अर्थात् दो, तीन, चार तथा पाँच इन्द्रिय वाले जन्तुओं ,वन्य प्राणियों या मनुष्यों की हिंसा का निषेध किया है। यदि महावीर प्रतिपादित इस स्थूल हिंसा का ही परित्याग कर दिया जाये । तो प्रदूषण से बचा जा सकता है।
___ अहिंसा का केवल पारलौकिक ही नहीं अपितु प्रत्यक्ष जीवन से भी गहरा संबंध है । यह तथ्य आज हमारी समझ में आने लगा है अहिंसा जहाँ प्राण विनाश की दृष्टि से विचार करती है विज्ञान उस पर प्रदूषण की दृष्टि से विचार करता है। जैन धर्म प्राणी मात्र (पृथ्वी, जल आदि भी प्राणी = जीव है ) की दृष्टि से अहिंसा पर विचार करता है। और विज्ञान केवल मनुष्य की दृष्टि से किन्तु परिणाम की दृष्टि से दोनों एक ही केन्द्र बिन्दु पर आकर मिल जाते है। आइये इनमें से एक - एक पर संक्षेप से विचार करें - मृदा या मिट्टी का प्रदूषण -आज अधिक से अधिक खनिज पदार्थों विशेषत: कोयला एवं तेल के लिए जिस तीव्रता से पृथ्वी का खनन किया जा रहा है वह चिंता का विषय है। औद्योगीकरण के कारण बड़े शहरों
और कारखाने की आसपास की जमीन अत्यंत प्रदूषित होती जा रही है। खनन से उठने वाली धूलि ने फेफड़ों एवं गले के रोगों को जन्म दिया है, इससे पृथ्वीकायिक जीवों के साथ - साथ सैकड़ों त्रसकायिक जीवों का भी घात होता है । रेडियोधर्मी कचरा जहाँ दबाया जाता है वह जमीन तक विषैली हो जाती है । यदि पृथ्वीकायिक जीवों की स्थूल हिंसा से भी विरत हुआ जा सके तो ऐसे प्रदूषण से बचा जा सकता है। मिट्टी
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