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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मुक्त हो जाता है । अत: रत्नकरण्ड श्रावकाचार का श्रावक धर्म के पालन करने में विशेष महत्व है ।इस मूलग्रंथ को प्रमुख सात अधिकारों में बाटा गया है। वह विभाजन इस प्रकार है :
___1. सम्यक् दर्शनाधिकार 2. सम्यक् ज्ञानाधिकार 3. अणुव्रताधिकार 4. गुणव्रताधिकार 5. शिक्षाव्रताधिकार 6.सल्लेखनाधिकार 7. प्रतिमाधिकार ।
___ क्रमशः प्रथम अधिकार में सम्यग्दर्शन के विषयभूत आप्त, आगम और गुरु का स्वरूप बतलाया गया है तथा सम्यग्दर्शन के आठ अंगों का विस्तारपूर्वक वर्णन कर प्रत्येक अंक की सार्थक कथा लिखकर पाठकों को तथा पाठ्यक्रम की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण बना दिया गया है सम्यक् दृष्टि के लिए भय, आशा, स्नेह तथा लोभ के वशीभूत होकर कभी धर्म से विचलित होकर कुगुरु कुदेव और कुशासनों के मानने का दृढ़तापूर्वक निषेध किया गया है।
द्वितीय अधिकार में सम्यग्ज्ञान की विशेषता बताई गई है। श्रुतज्ञान शास्त्रज्ञान की महानता बताई गई है। तथा जैनागम के चार दर्शक सोपानों क्रमशः प्रथमानुयोग, करणानुयोग चरणानुयोग तथा द्रव्यानुयोग का बड़ा सूक्ष्म तथा हृदयग्राही वर्णन किया गया है।
तृतीय अधिकार में सम्यक्चारित्र समीचीन संयम पालन में श्रावक धर्म की सार्थकता बताई गई है । मुनियों निर्ग्रन्थों को सकलचरित्र तथा गृहस्थों को विकल चारित्र पालने की प्रेरणा देने वाले, पांच अणुव्रत,तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत बारह प्रकार के चारित्र पालन में जीवन की सार्थकता बताई गई है।
चतुर्थ अधिकार में अणुव्रतों के पालन करने का महत्व बताकर यह शिक्षा दी गई कि जीवन में, भोग, उपभोग, त्याग, यम, नियम, संयम पालन क्यों करना चाहिए तथा इनके पालन में किन-किन दोषों अतिचारों से बचना चाहिए ताकि प्रावधर्म का उचित रीति से पालन किया जा सके।
पाँचवे अधिकार में शिक्षाव्रतों के पालन करने में कौन-कौन सी सावधानी वरतना चाहिए तथा व्रतीजनों की सेवा करने में द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव को ध्यान में रखकर श्रावक को अपने श्रावक धर्म की मर्यादा का किस प्रकार पालन करना चाहिए। आगत अतिथि की सेवा करना भी मानव धर्म है इसे ग्रन्थकार ने वैयावृत्य नाम देना उचित समझा है।
षष्ठम् अधिकार में जीवन की सार्थकता में समाधिमरण - धर्मध्यान पूर्वक शरीर का विसर्जन करना बताया गया है । समाधिपूर्वक मरण होना यह जीवन का चरमोत्कर्ष है तथा वोधि समाधि तथा परिणामों की शुद्धता होने से यह समाधिमरण या पण्डितमरण प्राप्त होना बड़े पुण्य कर्म का फल बताया गया है समाधिमरण का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति बताया गया है। स्वर्ग की प्राप्ति भी इसका दूसरा उद्देश्य माना गया है।
सप्तम् अधिकार में श्रावकों कुशलतापूर्वक धर्मपालकों के हित में ग्यारह प्रतिमाओं के संयम पालन करने में ग्यारह नियमों के पालन करने का वर्णन किया गया है । ग्रन्थ के अंत में धर्म ज्ञाता का समीचीन लक्षण बताकर दो श्लोकों द्वारा ग्रन्थ का उपसंहार किया गया है।
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