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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ से परिभाषित है, न कि आत्महत्या से। प्रसिद्ध नीतिकार भर्तृहरि कहते हैं कि - कोई चाहे न्यायसंगत आचरण की निंदा करे अथवा प्रशंसा, उससे आर्थिक लाभ हो या हानि अथवा तुरंत मरण प्राप्त हो जाये या सैकड़ों वर्षों तक जियें, किन्तु धीर-वीर पुरुष न्यायमार्ग से च्युत नहीं होते है।"
यहाँ भी नीतिकार ने धर्म और न्याय की रक्षा के लिए अपने प्राणों का परित्याग करना श्रेष्ठ कहा है, उसे आत्महत्या नहीं कहा है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से भी सल्लेखना को आत्महत्या नहीं कहा जा सकता है ।
संदर्भ सूची
राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं संशोधन संस्थान, श्रीधवलतीर्थ, श्रवणबेलगोला (हासन, कर्नाटक) 1. आप्टे, संस्कृत हिन्दी - कोश 2. सम्यक्कायकषायलेखना सल्लेखना।
- सर्वार्थसिद्धी - 7/22, पृ. 280 3. सागारधर्मामृत, 8/1 4. धर्मसंग्रह श्रावकाचार, 7/1
भगवती आराधना, गाथा सं. 208 6. सल्लेखनाऽथवा ज्ञेया बाह्यभ्यन्तरभेदत: । रागादीनां चतुर्भुक्ते: क्रमात्सम्यग्विलेखनात् ।
रागो द्वेषश्च मोहश्च कषाय: शोकसाध्वसे । इत्यादीनां परित्याग: साऽन्तः सल्लेखना हिता ॥ अन्नं खाद्यं च लेह्यं च पानं भुक्तिश्चतुर्विधा । उज्झनं सर्वथाऽप्यस्या बाह्या सल्लेखना मता ॥धर्म संग्रह- श्रावकाचार 7/30-32 आत्मसंस्कारानन्तरं तदर्थमेव क्रोधादिकषायरहितानंतज्ञानादिगुणलक्षणपरमात्मपदार्थे स्थित्वा रागादिविकल्पानां सम्यग्लेखनं तनुकरणं भावसल्लेखना, तदर्थं कायक्लेशानुष्ठानं द्रव्यसल्लेखना । - पंचास्तिकाय, गाथा 173 की तात्पर्यवृत्ति, पृष्ट 253। सल्लेखनाऽसंलिखत: कषायान्निष्फला तनो: । कायोऽजडैदण्डयितुं कषायानेव दण्डयते ।
-सागारधर्मामृत, अध्याय आठ, श्लोक 22 9. अन्धो मदान्धैः प्रायेण कषाया: सन्ति दुर्जया: । ये तु स्वांगान्तरज्ञानात्तान् जयन्ति जयन्ति ते ।।
- सागारधर्मामृत, 8/23 10. धवला टीका, 1/1.1.1./23-24
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