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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ के प्रदूषण से वायु - प्रदूषण गहरे रूप में जुड़ा हुआ है अत: पृथ्वी संबंधी हिंसा से विरत होने पर वायु प्रदूषण से भी हमारी रक्षा हो सकेगी।
पानी का प्रदूषण - पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन के लिए वायु के बाद सबसे आवश्यक तत्त्व जल ही है पर आज वायु के बाद जल ही सबसे अधिक प्रदूषित हो रहा है। प्रदूषित पानी पीने से उसमें रहने वाले जीवों के साथ ही मनुष्य तक की मृत्यु हो जाती है। समाचार पत्र ऐसी घटनाओं से भरे रहते है। कारखानों का विषैला जल तथा अन्य वस्तुएँ पानी में डाल दी जाती है। प्लास्टिक का कचरा भी अत्यधिक मात्रा में जल में ही विसर्जत किया जाता है। हमारी धार्मिक मान्यताओं के कारण भी अनेक वस्तुएँ जल में प्रवाहित की जाती है। इससे अधिक विडम्बना और क्या होगी कि गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों को भी साफ करने की योजनाएँ बनानी पड़ रही हैं । समुद्र का पानी तक प्रदूषिण होता जा रहा है। जिसके कारण वैज्ञानिकों की नींद हराम हो गयी है।
यदि हम महावीर प्रतिपादित जलकायिक जीवों की हिंसा का त्याग करें, नदियों/ तालाबों में प्रदूषित पदार्थ न डालें तो इस स्थिति से बचा जा सकता है। सच्चा अहिंसक कभी ऐसा नहीं करता, करने पर अपनी आलोचना करता है । आलोचना पाठ में कहा गया है है -
जल मल मोरिन गिरवायो, कृमि कुल बहु घात करायो ।
नदियन बीच चीर धुवाये कोसन के जीव मराये ।। स्वकल्याण की दृष्टि से हमें पानी छानकर ही पीना चाहिए साथ ही उबाला हुआ पानी और भी अधिक शुद्ध है। परकल्याण की दृष्टि से पानी में प्रदूषित पदार्थ रसायन आदि नहीं डालना चाहिए। कम से कम पानी का उपयोग करना चाहिए।
अग्नि, ईधन या तेल का प्रदूषण - ईधन का प्रदूषण भी कम भयावह नहीं है। कोयला, मिट्टा का तेल, डीजल, पेट्रोल आदि के अमर्यादित प्रयोग से जो धुआँ उठता है वह पूरे वायुमण्डल को दूषित कर देता है आज ओजोन परत तक में छिद्र हो गया है यह स्थिति बड़ी भयावह है किसी बड़े शहर के व्यस्त चौराहे पर शाम को आप खड़े हो जाये। तो सांस लेना भी भारी हो जाता है। इसका कारण धुएँ से आक्सीजन (जीवनदायक तत्त्व) का नष्ट हो जाना है एक तथ्य के अनुसार एक व्यक्ति पूरे साल में जितनी आक्सीजन का उपयोग करता है उतनी आक्सीजन एक टन कोयला जलने में, एक मोटर के एक हजार किलोमीटर चलने में, एक हवाई जहाज के दो हजार कि.मी. की यात्रा में खत्म हो जाती है। अग्निकायिक हिंसा से विरत होकर तथा अपनी आवश्यकताएँ कम से कम करते इस प्रदूषण से बचा जा सकता है।
वायु - प्रदूषण - पृथ्वी पर जीवन के लिए सबसे आवश्यक महाभूत वायु है । औद्योगीकरण का सबसे दुःखद पहलू वायु प्रदूषण है। विभिन्न गैसों के वायु में मिलने से वायु दूषित हो रही है, इससे विभिन्न शारीरिक और मानसिक रोग यहाँ तक कि मृत्यु भी हो जाती है। पेड़-पौधों का जीवन भी बहुत कुछ वायु पर आधारित है तथा समग्र जीव जाति का जीवन भी वायु और वायुमण्डल के वातावरण पर अबलम्बित
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