Book Title: Dayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Author(s): Ganesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publisher: Ganesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar

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Page 692
________________ आर्गम संबंधी लेख साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ केरल में जैन स्मारकों के अध्ययन को दो भागों में बांटा जा सकता है (1) प्राकृतिक या महापाषाणयुगीन स्मारक जैसे गुफायें, गुहा मंदिर कुडक्कल और टोपीकल्लु आदि (2) निर्मित मंदिर (Structural Temples). केरल के इतिहास में महापाषाणयुगीन अवशेषों का विशेष महत्व है । डॉ. सांकलिया ने उनका समय ईसा से 1000 वर्ष पूर्व से लेकर ईसा से 300 वर्ष पूर्व तक बताया है। इस प्रकार की निर्मितियां हैं कुडक्कल और टोपी कल्लु तथा शैल आश्रय (rock shelters) । कुडक्कल एक प्रकार की बिना हेडल की छतरी के आकार की रचना होती है। इसमें चार खड़े पत्थरों के ऊपर एक औंधी शिला रख दी जाती थी। आदिवासी जन इन्हें मुनिमडा कहते हैं जिसका अर्थ होता है मुनियों की समाधि । इस प्रकार की मुनियों की समाधियां केरल में अनेक स्थानों पर हैं। अरियन्नूह, तलिप्पंख, मलपपुरम आदि कुछ नाम यहां दिये गये हैं। इनकी संख्या काफी अधिक है। इनका भी ऐतिहासिक अध्ययन आवश्यक है। __ कोडंगल्लूर में ही केरल की सबसे प्राचीन मस्जिद बताई जाती है। लोगन्स के अनुसार वह किसी समय एक जैन मंदिर था । अब केवल इतना ही कहा जा सकता है कि वह एक द्वितल विमान था । इरिजालकुडा में कूडलमाणिक्यम् नामक एक विशाल मंदिर है। ये चेर शासकों के समय निर्मित अनुमानित किया जाता है। यह एक द्वितल विमान या मंदिर है। इसका अधिष्ठान पाषाण का है किंतु उसके ऊपर की दीवारें लकड़ी की हैं। इसमें एक काट्टम्बलम् या नृत्य संगीत के लिए एक मंडप भी है जिसकी आकृति एक अधखुली छतरी जैसी है। इसका गोपुर काफी ऊँचा है। मंदिर के साथ ही एक अभिषेक सरोवर या टेप्पकुलम् है। इसका जल केवल अभिषेक के लिए ही उपयोग में लाया जा सकता है। यहां प्राचीनता के प्रमाणस्वरूप स्थाणुरवि नामक शासक का एक शिलालेख नौवीं सदी का है। इसमें भरत की एक मूर्ति है जिसके दर्शन की अनुमति महिलाओं को नहीं थी। केरल के प्रसिद्ध इतिहासकार श्रीधर मेनन का कथन है, "According to some scholars the Kudalmanikkam temple anyirinjalkuda, dedicated to Bharata, the brother of seri Rama, was once a Jain shrine and it was converted into a Hindu temple, during the period of the decline of Jainism. It is argued that the deity originally installed in the Kudalmanikkam temple is a Jain Digambar, in all probability Bharateswara, the same Saint whose statute exists at Sravanbelgola in mysore. भरत बाहुबलि के बड़े भाई थे यह इस कथन में शायद छूट गया है। त्रिचुर में वडक्कुन्नाथ नामक एक मंदिर है। वडकुन्नाथ का अर्थ है उत्तर के देवता का मंदिर। वह एक सर्वतोभद्र विमान है, जिसमें चार द्वार होते हैं किंतु इसमें केवल तीन द्वार ही रह गये हैं। यह गोलाकार है और एक कम ऊँची पहाड़ी पर स्थित है जिसे वृषभाद्रि कहते हैं। इसमें जैनों को अत्यंत प्रिय कमल और पत्रावलि का प्रचुर प्रयोग हुआ है। इसके परिक्रमापथ में अनेक मूर्तियां हैं। मुख्य मंदिर से जुड़ा ऋषभ मंडप भी है जिसमें जनेऊ धारण करके और ताली बजाकर प्रवेश करना होता है । इसके परिसर में कुछ अन्य छोटे -589 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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