Book Title: Dayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Author(s): Ganesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publisher: Ganesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar

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Page 693
________________ आगम संबंधी लेख साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मंदिर भी हैं। इसके चार गोपुर हैं। पिछले गोपुर में जैनों का प्रिय परस्पर बैरी जीव का चित्रण भी है। इसके नौ शिलालेखों में चार नष्ट हो गये हैं इस कारण इसके इतिहास का ठीक ठीक पता नहीं लगता । इसके नाम और अंकन आदि से ऐसा लगता है कि यह मूल रूप से जैन मंदिर था। श्री वालत्तु के अनुसार इस मंदिर ने तीन युग देखे हैं - 1. आदि द्रविड़ काल. 2. जैन संस्कृति युग और 3. शैव वैष्णव युग जो अभी चल रहा है। स्पष्ट लगता है कि यह ऋषभ देव का मंदिर था। कोझिक्कोड में एक तुक्कोविल है। यह श्वेतांबर मंदिर है। कहा जाता है कि लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व गुजराती जैनों को जामोरिन ने इसलिए दिया था कि ये पर्युषण के दिनों में वापस गुजरात न जावें और यहीं पर अपना पर्व मना लिया करें। मंदिर प्राचीन है किंतु उसका भी जीर्णोद्धार हुआ है। उसका अधिष्ठान ग्रेनाइट पाषाण का है और छत ढलवां है। कलिकुंड पार्श्वनाथ के नाम से भी जाने जाने वाले इस मंदिर में मूलनायक पार्श्व के अतिरिक्त अन्य तीर्थंकर प्रतिमायें भी हैं जिनमें अजितनाथ की ध्यानावस्था प्रतिमा का अलंकरण विशेष रूप से आकर्षित करता है। उनके मस्तक के पास हाथी, देवियों और यक्ष-यक्षिणी की लघु आकृतियां हैं। गर्भगृह के मुख्य द्वार पर कांच का विशेष काम है विशेषकर नेमिनाथ की बारात का । इसकी छत लकड़ी की है। इसी मंदिर से जुड़ा आदीश्वर स्वामी मंदिर भी है। उसके गर्भगृह के बाहर ऋषभदेव के यक्ष गोमुख और यक्षिणी चक्रेश्वरीदेवी, लक्ष्मी और अन्य देवियों का भव्य उत्कीर्णन काले पाषाण पर किया गया है । इसकी दूसरी मंजिल पर वासुपूज्य स्वामी और अन्य प्रतिमायें जैन प्रतीकों सहित स्थापित है। मंदिर से बाहर एक कोष्ठ में कमल पर ऋषभदेव का उल्लेख है कि तलक्काड़ में प्राप्त मूर्ति को यद्यपि विष्णु मूर्ति कहा जाता है किंतु उसका शिल्प सौष्ठव चितराल के जैन शिल्प के सदृश है। श्रीधर मेनन ने भी जैन मूर्तिकला के क्षेत्र में भी जैनों का Valuable contribution स्वीकार किया है। केरल के भगवती मंदिरों में तेय्यट्टम् नामक एक उत्सव में अष्टमंगल द्रव्यों के प्रयोग की सूचना डॉ. कुरूप ने इस प्रकार दी है, "The virgin girls who had observed several rituals like holy bath and clad in white clothes proceed with Talppoli before the Teyyam of Bhagavati. In festivals and other occassions the eight auspicious articles like umbrella, conch, swastik, Purna Kumbha, and mirror are provided for prosperity and happiness as a tradition. This custom is also relating to Jainism." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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