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आगम संबंधी लेख
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ 4. भव परिवर्तन - नरकादि गतियों में बार-बार उत्पन्न होकर जघन्य से उत्कृष्ट पर्यन्त सब आयु को क्रम
से भोगने रूप परिभ्रमण का नाम भव परिवर्तन है।
विशेष - देव गति में 31 सागर की आयु तक ही पंच परावर्तन होते हैं यद्यपि देवों की उत्कृष्ट आयु 33 सागर है किन्तु 31 सागर से अधिक आयु वाले देव नियम से सम्यग्दृष्टि होते हैं इससे इनके पंच परावर्तन नहीं होते अर्थात् १ अनुदिश और 5 अनुत्तर देवों के। 5. भाव परावर्तन - सब योग स्थानों और कषाय स्थानों के द्वारा क्रम से ज्ञानावरणादि सब कर्मों की
जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट स्थिति भोगने रूप परिभ्रमण को भाव परिवर्तन कहते हैं।
इस प्रकार से इस पंच परावर्तन से जुड़े हुए सभी जीव संसारी कहलाते है और जो छूट गये हैं वे मुक्त जीव है। इन्हीं कारणों से प्राणी संसार में भ्रमण करता है।
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