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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ भाषण हुआ । वर्णी जी के साथ मिलने पर आपने हार्दिक हर्ष व्यक्त किया । सन्त वर्णी ने राष्ट्रपति महोदय से
कहा :
" जिस विहार प्रान्त में भगवान महावीर तथा महात्मा बुद्ध जैसे अहिंसा के पुजारियों ने जन्म लिया वही विहार आपका प्रान्त है । और इसी प्रांत में मांस तथा मद्य की प्रचुरता देखी जाती है इस मांस-मद्य सेवन से गरीबों की ग्रहस्थी उजड़ रही है। उनके बालबच्चों को पर्याप्त अन्न और वस्त्र नहीं मिल पाता । निर्धन अवस्था के कारण शिक्षा की और भी उनकी प्रगति नहीं हो पाती। इसलिए ऐसा प्रयत्न कीजिए कि जिससे यहाँ के निवासी इन दुर्व्यसनों से बचकर अपना भला कर सके। आप जैसे आस्थावान राष्ट्रपति को पाकर भारतवर्ष गौरव को प्राप्त हुआ"।
उत्तर में राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि "हमें भी यही इष्ट है । हम ऐसा प्रयत्न कर रहे हैं कि विहार ही क्यों भारत के किसी भी प्रदेश में मद्यपान आदि न हो । पूज्य गान्धी जी ने मद्यनिषेध को प्रारंभ किया है और हम उनके पदानुगामी हैं परन्तु खेद इस बात का है कि हम द्रतुगति से उनके पीछे नहीं चल पाते ।
4.
सं० १९८० में काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में शास्त्रीय परीक्षा के कोर्स का अध्ययन करते हुए परीक्षा का प्रवेश फार्म भर तो दिया । परन्तु धार्मिक उत्सवों में सम्मिलित होने के कारण विशेष अध्ययन नहीं कर पाया, अतः शास्त्री जी आप से रुष्ट रहते थे । परीक्षा के 20 दिन शेष रह गए थे। कई ग्रन्थ तो ज्यों के त्यों सन्दूक में ही रखे रहे । तथापि परीक्षा देने का साहस किया। उस सन्त की दैनिकचर्या थी कि प्रात: नित्य स्नान के बाद भ० पार्श्वनाथ के दर्शन करना, महामन्त्र की जाप करना, सहस्रनाम का पाठ करना पश्चात् पाठ्य पुस्तकों का अध्ययन, सायंकाल भी महामन्त्र की जाप, सहस्रनाम का पाठ करने के बाद ग्रन्थों का अध्ययन करना। इस प्रकार 20 दिन पूर्ण हुए ।
परीक्षा के दिन प्रातः स्नान- देवदर्शन - सहस्त्र नाम पाठ के पश्चात् पुस्तक लेकर परीक्षा देने के लिए चल दिया । मार्ग में पाठग्रन्थ के 5-6 स्थल पढ़ लिए थे । विश्वविद्यालय में प्रात: 8 बजे प्रश्न पत्र दिया गया । श्री महामन्त्र एवं सहस्रनाम के प्रभाव से ग्रन्थों के जो प्रकरण मार्ग में देखे थे वे ही प्रश्नपत्र में दृष्टि गत हुए। महान आनन्द के साथ उन प्रश्नों का उत्तर लिखा । इसी प्रकार आठदिन के प्रश्नपत्र भी अनुभव से अच्छे लिखे गये । परीक्षा समाप्त हुई । सात सप्ताह बाद परीक्षा फल श्रेणी प्रथम तथा 800 पूर्णाकों में से 640 लब्धाडक् रूप में घोषित हुआ । शास्त्रीजी को बहुत प्रसन्नता हुई। 25 ) मा0 छात्रवृति की व्यवस्था होने लगी | आगे आचार्य परीक्षा की तैयारी होने लगी ।
5.
हरदी (सागर) के पंचकल्याणक महोत्सव में बड़गांव से श्री रघुनाथ जी मोदी उन सन्त वर्णी की शरण में आए और अपनी करूण कथा कहने लगे -
"महाराज ! हम एक कुटुम्ब के करीब 200 भाई अनुमानत: 50 वर्ष से अब तक जैन समाज से बहिष्कृत हैं । बहिष्कार का कारण कोई पाप या अपराध नहीं, किन्तु अन्तर्जातीय विवाह ही एक कारण है। हम सब बहुत परेशान हो रहे है। हमारी प्रार्थना है कि आपके प्रयत्न से हम सबका उद्धार हो जाय ।'
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वे सन्त बाबा गोकुलचन्द्र जी के साथ उमंग लिए बड़गांव पहुँचे । वहाँ की सामाजिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया । शास्त्र प्रवचन में उपस्थित समाज के सामने एक कुटुम्ब के स्थितीकरण के विषय को उपस्थित किया। परन्तु सफलता नहीं मिली। दूसरी बार भी इस विषय को उपस्थित किया पर विवाद ही होता
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