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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ भारतीय दर्शनों में आत्मद्रव्य की मान्यता
इस विश्व में मूलत: दो द्रव्ये सत्ता रखती हैं 1. जीव, 2. अजीव,। उनमें अजीव द्रव्य पाँच प्रकार का होता है - पुद्गल,धर्म,अधर्म, आकाश एवं काल । जीव या आत्मा एक मौलिक तत्व है जो अपनी स्वतंत्र सत्ता रखता है । आत्मद्रव्य को प्रायः सभी भारतीय दर्शनों मे विभिन्न लक्षण रूप से स्वीकृत किया गया है, कारण कि इसकी सत्ता स्वीकृत किये बिना विश्व की व्यवस्था तथा प्राणियों की गतिविधि व्यवस्थित नहीं हो सकती है । भारतीय दर्शनों में आत्मा की रूप रेखाएँ इस प्रकार है :सांख्यदर्शन -
. इस दर्शन ने विश्व में कुल दो ही मूल पदार्थ माने हैं, आत्मा एवं प्रकृति । आत्मा अज्ञानी होने से संसार में भ्रमण करता है । ज्ञान होने पर आत्मा कर्मबंधन से छूट जाता है । कुछ समय अर्हत रहकर मुक्त हो जाता है। इस दर्शन ने सुख आदि गुणों का अभाव माना है। आत्मा सदैव शुद्ध कर्म विकार रहित और पर्याय रहित माना है ज्ञाता दृष्टा है क्रोधादि विकार प्रकृति के कारण होते है। योगदर्शन -
इस दर्शन ने विश्व में तीन मूल पदार्थ माने हैं - आत्मा, प्रकृति एवं ईश्वर । आत्म के विषय की मान्यता सांख्य दर्शन के समान है। ईश्वर कर्ता नहीं है और न प्राणियों को सुख-दुख फल देता है । मात्र वह ईश्वर ज्ञान को देने वाला गुरु है ज्ञाता दृष्टा है। न्यायदर्शन और वैशेषिक दर्शन
___ विश्व में द्रव्य आदि सात पदार्थ और आत्मा आदि 9 द्रव्यों की मान्यता इन दर्शनों में है आत्मा अनंत है। ये पूर्व कर्म के कारण जन्म मरण करती हैं । न्याय दर्शन ने राग द्वेष आदि आत्मा के छह गुण माने है । वैशेषिक दर्शन ने राग द्वेष आदि के 14 गुण माने है। ज्ञान मन शरीर आदि का नष्ट हो जाना आत्मा का मोक्ष है। मुक्तात्मा के गुणों का वर्णन नहीं है। वेदांत या उत्तरमीमांसा -
___इस दर्शन में मात्र ब्रह्मतत्व ही एक माना गया है जो साच्चिदानंद, सर्वव्यापी है । संसारी अनंत आत्माएँ एक ब्रह्म का ही अंश है । आत्मा पूर्व संस्कार के कारण जन्ममरण करती हैं। अपनी अज्ञानता से सुख-दुख प्राप्त करती है । ज्ञान होने पर आत्मा मुक्त होता हुआ उक्त ब्रह्मस्वरूप हो जाता है। आत्मा की स्वतंत्र मान्यता नहीं है। पूर्वमीमांसा दर्शन
जैमिनि आचार्य ने वेद कथित कर्मकाण्ड का उपदेश दिया है इसके अनुसार मनुष्य को देवी देवताओं
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