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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ 2. आष्टाह्निकपूजन - नन्दीश्वर पर्व में देवों एवं मानवों द्वारा भक्तिभाव से अष्टद्रव्यपूर्वक परमात्मा पूजन किया जाना |
3. सर्वतोभद्रपूजन - मानवसमाज के कल्याण के लिए महामण्डलेश्वर आदि राजाओं द्वारा एवं शासकों द्वारा उत्सव के साथ परमात्मा का पूजन किया जाना ।
4. कल्पद्रुमपूजन - विश्व के प्राणियों की सुरक्षा एवं कल्याण के लिए इच्छानुसार दानपूर्वक चक्रवर्तियों द्वारा महोत्सव के साथ परमात्मा का पूजन किया जाना ।
5. इन्द्रध्वज पूजन - इन्द्र प्रतीन्द्र आदि देवों के द्वारा महोत्सव पूर्वक परमात्मा का पूजन किया जाना। स्तोत्रभक्ति
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भक्ति का दूसरा प्रकार स्तोत्र है। अर्थात् पूज्य के गुणों की स्तुति द्वारा भक्ति करना । श्री जिनसेनाचार्य द्वारा स्तोत्र के विषय में रचित एक श्लोक है -
स्तुति: पुण्यगुणोत्कीर्ति:, स्तोता भव्य: प्रसन्नधीः ।
निष्ठितार्थो भवांस्तुत्य:, फलं नैश्रेयसं सुखम् ॥1॥ (सहस्रनाम स्तोत्र)
“गुणस्तोकं सदुल्लङ्घ्य, तद्बहुत्वकथा स्तुति:" (वृहत्स्वयम्भूस्तोत्र)
अर्थात् - पूज्यात्माओं के पवित्रगुणों का कीर्तन करना अथवा श्रेष्ठ अल्पगुणों को भी विस्तार से हा स्तुति है । स्तुति करने वाला भक्त कल्याण का इच्छुक और पवित्र बुद्धि वाला होता है । सर्वज्ञ, वीतराग (निर्दोष) और हितोपदेशी परमात्मा ही पूज्य होता है। स्तोत्रभक्ति का अंतिमफल कर्मों से मुक्ति प्राप्त करना है। जैन दर्शन में स्तोत्रसाहित्य भी महान है जो संस्कृत हिन्दी प्राकृत आदि भाषाओं में उपलब्ध है। जैसे - भक्तामर स्तोत्र, सहस्रनाम स्तोत्र, स्वयंभूस्तोत्र आदि ।
इस स्तोत्रमाला से भिन्न अनेक पूज्य ऋषिराजों द्वारा संस्कृत तथा प्राकृत में भक्तिपाठों का निर्माण किया गया है, जो मुनियों और श्रावकों द्वारा आराधना करने योग्य है । वे भक्ति पाठ इस प्रकार हैं -
1. सिद्धभक्ति, 2. श्रुतुभक्ति, 3. चारित्रभक्ति, 4. योगभक्ति, 5. आचार्य भक्ति, 6. पंचगुरुभक्ति, 7. तीर्थंकर भक्ति, 8. शांति भक्ति, 9. समाधि भक्ति, 10. निर्वाण भक्ति, 11 नंदीश्वर भक्ति, 12. चैत्यभक्ति। इस प्रकार अनेक प्रकार की भक्ति संसार की संतति का छेदन करने वाली है अत: श्रावक का परम आवश्यक कर्तव्य है । कि भक्ति मार्ग से संसार सागर पार करें।
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