________________
कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ 6. विक्रम की 11 वीं शताब्दी - गुणभद्राचार्य का अभिमत -
नास्ति जातिकृतो भेदो, मनुष्याणां गवाश्ववत् । आकृतिग्रहणात्तस्मादन्यथा परिकल्यते ॥1॥
तात्पर्य - जैसा घोड़ा तथा गाय आदि जानवरों में भेद है, उस प्रकार आकृति की अपेक्षा मानवों में भेद नहीं है। परन्तु संस्कार के भेद से मानव समाज में भेद पाया जाता है अत: राष्ट्र की एकता से मानवों में एकता होना आवश्यक है। 7. आचार्य जिनसेन- आदिपुराण भाग-2 पृ. 331
मध्येसम मथान्येयुः निविष्टो हरीविष्टरे। क्षात्रं वृत्तमुपादिक्षत्, संहितान्पार्थिवान्प्रति ॥1॥ तत्त्राणे च नियुक्तानां, वृत्तं व: पंचधोदितम् । तन्निशम्य यथाम्नायं, प्रवर्तध्वं प्रजाहिते ॥2॥ तच्चेदं कुलमत्यात्म प्रजानामनुपालनम्। समंजसत्वं चेत्येव युद्दिष्टं पंचभेदभाक् ॥3॥
भाव - राष्ट्र की सुरक्षार्थ 6 कर्तव्य- 1. परिवार की सुरक्षा, 2. सद् बुद्धि की सुरक्षा, 3. अपने राज्य की सुरक्षा, 4. प्रजा की सुरक्षा, 5. भ्रातृभाव (मैत्रीभाव)।
आचार्य अमित गति का अखण्डराष्ट्र के लिए संदेश - सत्त्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम्। माध्यस्थभावं विपरीत वृतौ। सद्य ममात्मा विदधातु देव ॥1॥ वि.सं. 101 (द्वितीय शताब्दी) आचार्य उमास्वामी की घोषणापरस्परोपग्रहो जीवानाम् ॥ तत्त्वार्थसूत्र ॥
मैत्री प्रमोद कारूण्य माध्यस्थानि च सत्त्वगुणाधिक - क्लिश्यमानाविनयेषु ॥त.सू.॥ 10. आचार्य समन्त भ्रद - विक्रम की चतुर्थ शताब्दी - पारस्परिक भ्रातृभाव का उद्बोधन -
स्वयूत्थ्यान्प्रति सद्भाव सनाथाऽपेत कैतवा। प्रतिपत्ति: यथायोग्य, वात्सल्यमभिलप्यते ॥॥ 'अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमम्' बहवो यत्र नेतारः, सर्वे पण्डित मानिनः । सर्वे महत्वमिच्छन्ति, तत् राष्ट्रमवसीदति ॥1॥
12.
(385
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org