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शुभाशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ निज अमर कहानी लिखके ही सत मरण किया है हे गुणवर ॥ सिद्धांत शास्त्र, साहित्य रत्न इनके तुम उत्तम थे ज्ञाता ।
संस्कृत विद्यालय सागर में पढ़ बने वही पर व्याख्याता ॥ कर्मठ अध्यापक से लेकर प्राचार्य बने तुम सागर में । सारा जीवन तुम यहीं रहे श्री वर्णी भवन दिवालय में ।। परिवार इन्हों का अति छोटा है पाँच पुत्रियाँ अति सुन्दर । इनमें से चार सुखी जीवन वह रहत सदा अपने ही घर ।। बस एक किरण दीदी इनमें संयम पथ शील धरा उर में । पितु सेवा में ही रत रहकर जीवन ही विता दिया घर में ॥ सिद्धांत शास्त्र अरू एम.ए.कर दीदी ने यतन किया भारी । इस ग्रंथ छपाने में इनका सहयोग रहा है हित कारी ॥ दो सहस एक ईशा सन् में सन्मान गुरूजी को दीना । श्री विद्वत रत्न उपाधि अरू इक्यावन सहस नगद दीना॥ दो सहस चार ईशा सन् में श्री ज्ञान सिंधु उपझाया से । श्रुत संवर्धन पुरस्कार मिला इकतीस सहस की नगदी से ॥ अरू मिले अनेकों पुरस्कार सन्मान उपाधि अलंकार | श्री धर्म दिवाकर पीएच.डी कई सफल शिविर के सूत्रधार ॥ इनके सम्यक् गुण गा करके सूरज को दीप दिखाता हूँ। लेकिन कर याद यहाँ उनको श्रद्धा के सुमन चढ़ाता हूँ ।।
ज्ञान चंद जैन पिड़रूआ वाले
सागर (म.प्र.)
डॉ. पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य वंदनाष्टक देवागम गुरु वंदनीय जगत में, जैन आयतन जग विख्यात । सरस्वती माँ जग हितकारी, करें समर्पण पुण्य प्रभात ॥ सरस्वती सुत दीर्घ श्रृंखला, किया समर्पण पूर्ण जनम । तिनमें इक श्री दयाचंद जी, सागर वाले पुण्य नमन ॥1॥ ग्यारह अगस्त सन् पन्द्रह जनमे, ग्राम मगरोन शाहपुर जान । पिता सुपंडित भगवान दास जी, माता मथुरा बाई महान ॥ पंच पुत्र थे पाँचों पंडित, जैन जगत का अपूर्व उपकार ।
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