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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ वर्णी विद्यालय रूपी उद्यान के पुष्प
गुलाब चंद्र जैन पटनावाले
चकराघाट सागर विद्वानों में सर्वश्रेष्ठ तथा शाहपुर (मगरोन) में जन्में पंडित डाक्टर दयाचंद्र जी साहित्याचार्य जैन समाज के आदर्श सरस्वती पुत्र थे। यथा नाम तथा गुण की कहावत उनके जीवन में अक्षरशः साबित होती थी। वे समता, क्षमता तथा आदर्श अनुशासन के पर्यायवाची थे। पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी महाराज के शुभाशीष प्राप्त शिष्यों में से प्रमुख थे। उन्होंने अपना अध्यापकीय जीवन श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय वर्णी भवन मोराजी सागर से प्रारंभ किया था। धीरे धीरे अपनी विशेष प्रतिभा एवं योग्यता के आधार पर उन्हें प्राचार्य के पद पर ससम्मान नियुक्त किया गया। लगभग 55 वर्षों की उनकी सेवाओं के उपलक्ष में वर्ष 2003 में उन्हें श्री दिगम्बर जैन पंचायत सभा तथा विद्यालय ट्रस्ट कमेटी एवं प्रबंध कारिणी कमेटी द्वारा विद्वत् रत्न की उपाधि से तथा 51000 /- इन्क्यावन हजार रूपया की राशि से सम्मानित किया गया। इसी अवसर पर पूज्य पंडित जी ने आजीवन नि:शुल्क सेवा करने का वचन दिया तथा आजीवन इसे सम्मानपूर्वक निभाया । वर्ष 2006 में 12 फरवरी को जब सारे देश में तथा मोराजी के बाहुबलि जिनालय में भगवान बाहुबली स्वामी का महामस्तकाभिषेक चल रहा था, इसी पावन धार्मिक आयोजन की पावन, ध्वनि सुनते, सुनते तथा महामंत्र णमोकार का स्मरण एवं उच्चारण करते करते ठीक 12 बजकर 40 मिनट पर पंडित जी का समाधिमरण तुल्य देहावसान हुआ । यह विरले ही पुण्यशाली जीवात्माओं के जीवन में ऐंसा घटित होता है । वे सच्चे पुण्यात्मा थे।
पूज्य पंडित जी को अखिल भारत वर्षीय तीर्थंकर ऋषभदेव विद्वत् महासंघ पुरस्कार से पूज्य गणिनी प्रमुख आर्यिका ज्ञानमति माताजी के शुभाशीष सहित सम्मानित किया गया था। वर्ष 2005 में श्री अतिशय क्षेत्र तिजाराजी में, पूज्य 108 उपाध्याय रत्न ज्ञानसागर जी महाराज के सानिध्य में एवं पंचकल्याणक के महोत्सव के पावन अवसर पर "श्री श्रुत संबर्धन-पुरस्कार से सम्मानित किया गया तथा 31000 हजार (इकतीस हजार) रूपया की नगद राशि सम्मान स्मृति चिह्न, शाल श्रीफल आदि से सम्मानित किया गया जो समाज एवं महाविद्यालय के लिए गौरव की बात है। मुझे भी पूज्य पंडित जी के साथ तिजारा जी जाने का यह सौभाग्य प्राप्त हुआ था । इस के साथ ही "जैन पूजा काव्य' शोध प्रबंध पर पंडित जी को पीएच. डी., की उपाधि सागर विश्वविद्यालय से प्राप्त हुई थी। पूज्य पंडित जी स्वर्गीय पंडित दयाचंद्र जी साहित्याचार्य "साधुमना" के शिष्य थे। ऐसे बहुश्रुत मनीषी विद्वान का वियोग समाज के लिये अपूरणीय क्षति है। मैं दिवंगत आत्मा के चरणों में अपनी आदराञ्जली प्रेषित करता हूँ तथा स्मृति ग्रंथ प्रकाशन में सभी सहयोगी महानुभावों एवं सम्पादक मंडल की अपनी शुभकामना एवं बधाई प्रेषित कर गौरव का अनुभव करता हूँ।
विनतभाव सहित।
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