________________
8.
कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ 1. ऋषभनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनन्दननाथ,
गुरुग्रहशान्ति ___ सुमतिनाथ, सुपार्श्वनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ पद्मप्रभ
सूर्यग्रहशान्ति। चन्द्रप्रभ
चन्द्रग्रह शान्ति। विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ,
बुधग्रहशान्ति कुन्थुनाथ, अरनाथ, नमिनाथ, वर्धमान वासुपूज्य
मंगलग्रह शान्ति पुष्दन्त
शुक्रग्रह शान्ति 7. मुनिसुव्रतनाथ
शनिग्रह शान्ति नेमिनाथ,
- राहुग्रह शान्ति 9. मल्लिनाथ, पार्श्वनाथ
- केतुग्रह शान्ति भद्रबाहु चरूवाचैवं, पंचम: श्रुतके वली ।
विद्या प्रवादत: पूर्वात्, ग्रहशान्ति रूदीरिता ॥ 8 ॥" अर्थात् - पंचम श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहु आचार्य ने कहा है कि विद्याप्रवाद पूर्व से यह नवग्रह शान्ति विधान कहा गया है। महामंत्र में ध्वनि विज्ञान -
इस महामंत्र में स्वर व्यंजन तथा तदनुसार कुछ ध्वनियाँ भी विद्यमान हैं। ध्वनि विज्ञान के आधार पर । वर्ग का आद्य अक्षर अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है । इसलिये समस्त मंत्रों की मूलभूत मातृकाएँ ध्वनि रूप में इस महामंत्र के अन्तर्गत इस प्रकार विद्यमान हैं
__ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अ: । क् ख ग घ इ. च छ ज झ ञ, द ड् द ण, त् थ् द्ध न, प फ ब भ म य र ल व श ष स ह । इन ध्वनि रूप मातृकाओं के विषय में आचार्य जयसेन ने प्रतिपादन किया है
अकारादि क्षकारान्ता वर्णा: प्रोक्तास्तु मातृका: ।
सृष्टिन्यास स्थितिन्यास - संहतिन्यासतस्त्रिद्या ।।" सारांश - अकार से लेकर क्षकार (क् + ए = क्ष् + अ) पर्यन्त मातृका वर्ण कहे जाते है। इनका क्रम तीन प्रकार का होता है 1. सृष्टि क्रम, 2. स्थिति क्रम, 3. संहार क्रम । णमोकार मंत्र में मातृका ध्वनियों का तीनों प्रकार का क्रम सन्निविष्ट है। इसी कारण यह महामंत्र आत्मकल्याण के साथ लौकिक अभ्युदयों को भी देने वाला है। संहारक्रम ज्ञानावरणादि अष्ट कर्मो के विनाश को अभिव्यक्त करता है । सृष्टि क्रम और स्थित क्रम आत्मानुभूति के साथ लौकिक अम्युदयों की प्राप्ति में सहायक होता है।
(216
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org