________________
कृतित्व / हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मानव धर्म की रक्षा के लिये अपराधियों को अनुकुल दण्ड देने वाले, तथा केवल कुल परम्परा के लिये विवाह करने वाले, विद्वान् राजा दिलीप के अर्थ और काम पुरुषार्थ धर्म मूलक ही हुए थे अर्थात् महाराज दिलीप का राज्य धर्म मूलक था । यह ही राम राज्य का परम ध्येय है ।
राष्ट्रपिता म. गान्धी के जीवन में धार्मिकता और राष्ट्रीयता का गहरा समंवय था । देखिये उस महात्मा के महान् विचार - "अगर मुझमें स्वदेशी भावना है तो धर्म के विषय में मैं अपने पूर्वजों के धर्म पर ही दृढ़ रहूंगा। इससे मैं अपनी परवर्ती धार्मिक परिस्थिति का उपयोग करता हूं। अगर मुझे उसमें कोई खामी दिखाई दे तो उसे दूर करके मुझे अपने धर्म की सेवा करनी चाहिये । राजनैतिक बातों में भी मुझे देशी संस्थाओं का ही उपयोग करना चाहिये | अगर आदमी स्वदेशी भावना के अनुसार आचरण करे तो दुनियां में सत्ययुग जल्दी आ जायगा ।"
I
आत्म कथा, परिशिष्ट ख
राजनीति ने म. गांधी को अहिंसा के अभ्यास एवं प्रयोग के लिये ही प्रबल और व्यापक अवसर प्रदान किये है अत: उन्होंने अपने प्रधान आदर्श अहिंसा की सिद्धि के लिये ही राजनीति में प्रवेश किया था। इसमें अन्य कोई मुख्य कारण नहीं था ।
"जब तक शान्ति सेना का संगठन नहीं होता तब तक देश का विकास, आन्तरिक रक्षा एवं निर्भयता नहीं हो सकती। राष्ट्र में शान्ति सेना का निर्माण आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है । "
विनोवा भावे, प्रार्थना प्रवचन, ईडर, दि० 8-1-59 "संसार के अन्य देशों की शिक्षा का अन्य उद्देश्य हो सकता है किन्तु युवक-युवतियों को आध्यात्मिकता की ओर ले आना ही यहां की शिक्षा का प्रधान उद्देश्य रहा है और यही होना चाहिये । "
डा. सर राधाकृष्णन, भाषण, कलकत्ता 30-9-58 "मतभेदों को दूर करने के लिये युद्ध करना या खून बहाना मानवता के हित में नहीं । आज देश के बीच का अन्तर समाप्त हो गया है और युद्ध रहित संसार में ही आज के राष्ट्र की सुरक्षा है।" अमरीकी राष्ट्रपति आईजन हावर, देहली दिसम्बर सन् 59
धार्मिक तत्त्वों की राष्ट्रीय क्षेत्र में उपयोगिता
जिन उपयोगी धार्मिक तत्त्वों ने भारतीय राष्ट्रीयता को उन्नत करने में तथा भारतीय स्वतन्त्रताको प्राप्त कराने में सहयोग और आत्म बल प्रदान किया वे इस प्रकार हैं- (1) अहिंसा (2) क्षमा ( 3 ) त्याग ( 4 ) मांस त्याग ( 5 ) मादक वस्तु त्याग ( 6 ) स्वावलम्बन ( 7 ) ब्रह्मचर्य ( 8 ) अचौर्य ( 9 ) निर्भयता ( 10 ) विश्व प्रेम ( 11 ) हिंसा जनित विदेशी वस्तु का त्याग ( 12 ) अनशन (13) कायक्लेश ( 14 ) संयम ( 15 ) सत्याचरण ( 16 ) सेवा, ( 17 ) साम्यवाद ( 18 ) न्याय ( 19 ) नैतिक शिक्षा ( 20 ) अपरिग्रह ( 21 ) स्याद्वाद (22) विनय (23) वस्तुविज्ञान (24) आत्म विश्वास (25) निष्कपटता (26) पंच अणुव्रत अथवा पंचशील ।
300
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org