________________
कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ त्रैलोक्य तिलक विधान का समीक्षात्मक अनुशीलन
(ज्ञानमति माता जी अभिनंदन ग्रंथ देखिये)
"मूक माटी समीक्षा" पं. मुन्ना लाल रांधेलिया स्मृति ग्रन्थ देखिये
आचार्य कुन्दकुन्द की विशेषतायें
अभियान पंचक आचार्य: कुन्दकुन्दाख्यो वक्र गीवो महामति: । एलाचार्यों गृद्धपिच्छ. , पद्मनन्दी वितन्यते ॥1॥
अनेकान्तपत्रिका - किरण 2 - देहली जैन सिद्धांत भास्कर भाग 1, किरण - 4 में शक सं. 1307 का, विजयानगर का एक अभिलेखांश प्रकाशित हुआ है। जिसमें लिखा है -
आचार्य: कुन्दकुन्दाख्यो वक्रग्रीवो महामुनिः ।
एलाचार्यो गृद्धपिच्छ: इतितन्नाम पंचधा ।। पद्यनन्दी, 2 कुन्दकुन्द, 3 वक्रगीव, 4 एलाचार्य, 5 गृद्धपिच्छा ये 5नाम आचार्य कुन्दकुन्द के दर्शायें है परन्तु पद्मनन्दि - यह नाम उक्त श्लोक में नहीं है। महामुनि यह पद उनके विशेषण के रूप में निर्दिष्ट है इससे पद्मनन्दि का ग्रहण नहीं हो सकता।
___ कुन्दकुन्द रचित षट् प्राभृतों के टीकाकार श्रुतसागर आचार्य ने प्रत्येक प्राभृत के अन्त में जो पुष्पिका अंकित की है उसमें आप के 5 नामों का निर्देश है - 1 पद्मनन्दि, 2 कुन्दकुन्द, 3 वक्रग्रीव, 4 एलाचार्य, 5 गृद्धपिच्छ ।
___ 'डा. हार्न ले' ने दिगम्बर पट्टावलियों के विषय में एक निबंध लिखा है जिसमें उन्होंने कुन्दकुन्द के पाँच नाम दर्शाये हैं अतः इतना स्पष्ट है कि कुन्दकुन्द के दो नामों की प्रवृत्ति तो नि:संदेह रहीं है पर शेष 3 नामों के विषय में विवाद है 1 वक्रग्रीव, 2 एलाचार्य , 3 गृद्धपिच्छ।।
यद्यपि शिलालेखों में ये 3 नाम आते हैं परन्तु ये कुन्दकुन्द के ही नामानार हैं यह सिद्ध नहीं होता। पद्यनन्दि नाम का निर्देश - इन्द्रनन्दि आचार्य ने अपनी श्रुतावतारकथा में किया है -
तस्यान्वये भूविदिते वभूव, यः, पद्मनन्दि प्रथमाभिधान :। श्री कोण्डकुन्दादिमुनीश्वराख्यः, सत्संयमादुद्गत-चारणर्द्धि: ।।
-347
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org