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कृतित्व/हिन्दी उद्धरण :
गया है.
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( अलंकार चिन्तामणि: प्र. परि. पद्य 9)
तात्पर्य - न्याय व्याकरण साहित्य दर्शन धर्मशास्त्र अलंकार छन्द आदि के अध्ययन अध्यापन से उत्पन्न निपुणता को व्युत्पत्ति कहते है । गद्य पद्य सहित शब्दार्थ रचना की क्षमता को प्रज्ञा और प्रतिक्षण नवीन - नवीन विषयों के अन्वेषण तथा कल्पना शक्ति को प्रतिभा कहते हैं । सभी साहित्यकारों ने काव्य सृजन के कारणों का निर्देश करते हुए प्राय: प्रतिभा को अवश्य कहा है इसको विशेष कारणों से दुर्लभ कहा
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ
व्युत्पत्त्यभ्यास संस्कार्या, शब्दार्थ घटना घटा । प्रज्ञा नवनवोल्लेख शालिनी प्रतिभास्य धीः ॥
नरत्वं दुर्लभं लोके, विद्या तत्र सुदुर्लभा । कवित्वं दुर्लभं तत्र, शक्तिस्तत्र सुदुर्लभा ॥
(साहित्यदर्पण: पृष्ठ - 4)
प्रथम तो संसार में मानव जन्म दुर्लभ है, इससे भी दुर्लभ श्रेष्ठ विद्यालाभ, इससे भी दुर्लभ कवित्व बुद्धि और इससे भी महा दुर्लभ प्रतिभा गुण है।
जयोदय काव्य का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि इस काव्य के प्रणेता में इन तीन कारणों के होने पर ही जयोदय महाकाव्य की रचना हो सकी । इस महा कवि में काव्य शास्त्र कथितप्रज्ञ आदि सर्वगुण विद्यमान थे | काव्य के भेद प्रभेद का वर्णन :
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दृश्य श्रव्यत्वभेदेन पुनः काव्यंद्विधामतम् ।
काव्य के मुख्य दो भेद होते है (1) दृश्य (2) श्रव्य ।
जिस काव्य का स्टेज पर पात्रों द्वारा अभिनय किया जाये उसे दृश्य काव्य कहते है। इसको रूपक या नाटक भी कहते हैं । नाट्य शास्त्रों में इसके दशभेद कहे गये हैं ।
श्रव्य काव्य की रूपरेखा तथा उसके भेद -
'श्रव्यं श्रोतव्यमात्रं तत्पद्यगद्यमयं द्विधा' ।
रसात्मक वाक्य को श्रव्यकाव्य कहते हैं जो केवल श्रवण योग्य अथवा कहने योग्य होता है, अभिनय योग्य नहीं, इसके दो भेद होते हैं (1) पद्यमयकाव्य ( 2 ) गद्यमयकाव्य | छन्दो बद्ध काव्य पद्यकाव्य कहा जाता है यह अनेक प्रकार का होता है, यथा (1) मुक्तक (अन्यपद्य के सम्बंध से रहित एवं स्वतंत्र अर्थ से शोभित), (2) युग्मक (दो पद्यों के शब्दार्थ से युक्त एक क्रियावाला), (3) सांदानितक (तीन पद्यों में रचना एक क्रिया से संयुक्त), (4) कलापक (जिसकी रचना चार पद्यों में एक क्रिया से पूर्ण हो) । (5) कुलक (जिसकी रचना में एक क्रिया द्वारा पूर्ण हो) । जयोदय महाकाव्य में सभी तरह के पद्य काव्य विद्यमान है । जयोदय महाकाव्य प्रसिद्ध है । अत: महाकाव्य के स्वरूप पर विचार किया जाता है।
सर्गबन्धो महाकाव्यं, तत्रैको नायक: सुरः ।
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