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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ आठ कि.मी. बस, ट्रेन से या पद यात्रा से प्राप्त किया जाता है । कुन्दाद्रि वर्तमान में कर्नाटक प्रान्त के चिक्कमंगलूरु जिले के तीर्थहल्ली तहसील के अन्तर्गत, आदिवासी क्षेत्र की, तीन हजार फीट से भी उन्नत एक पहाड़ी है । कुन्दकुन्दाचार्य नाम के कारण यह प्राचीनकाल से ही तीर्थ के रूप में मान्य हैं।
मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी ।
मंगलं कुन्द कुन्दार्यो, जैनधर्मोस्तु मंगलम् ॥ यह मंगल मन्त्र प्राय: सर्वत्र प्रसिद्ध है और इसमें नमस्कृत कुन्दकुन्दाचार्य से ही इस पहाड़ी का संबंध है इसी पर उन्होंने घोर तपस्या की थी। इसी पहाड़ी से वे विदेह क्षेत्र गये थे। इसी पर उन महान् आचार्य के पवित्र चरण, 13 कलियों वाले कमल में विराजमान हैं। आचार्यकुन्दकुन्द :
आचार्य कुन्दकुन्द का जन्म दक्षिण भारत के पेदथनाडु जिले के अन्तर्गत कौण्डकुन्दपुर नामक ग्राम में, तथा एक अन्य विचार के अनुसार गुन्तकल के समीप कुण्डकुण्डी ग्राम में, ईशा की प्रथम सदी में हुआ था। अपने जन्मग्राम के नाम से ही ये आचार्य कुन्दकुन्द के नाम से प्रसिद्ध हो गये हैं। इनका वास्तविक नाम आचार्य पद्मनन्दी दर्शाया जाता है। इनके पंचनाम निमित्तवश अन्य भी प्रसिद्ध हो गये हैं -
आचार्य: कुन्दकुन्दाख्यो, वक्र गीवो महामतिः । एलाचार्यो गृद्धपिच्छ: पद्मनंदी वितन्यते ॥ अनेकांतपत्रिका किरण-2 देहली
ये आचार्य भद्रबाहु द्वितीय के अथवा श्रुतकेवली भद्रबाहु के पारम्परिक शिष्य माने जाते हैं। दिगम्बर जैन समाज में अति प्रसिद्ध होने के कारण ही उसी समय से यह समाज मूलसंघ एवं कुन्दकुन्दान्वय का माना जाता है। ये तमिल निवासी थे । दक्षिण भारत के शिलालेख में आपका नाम 'कोण्डकुन्द'प्राप्त होता है। इन महान् आचार्य ने जैन दर्शन के आध्यात्मिक ग्रन्थों की जो प्रामाणिक रचना की है वह अद्वितीय है। आपने प्रवचनसार, समयसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, रयणसार आदि आध्यात्मिक ग्रन्थों की रचना तथा पाहुडग्रन्थ, भक्तिग्रन्थ, वारस अणुपेक्खा, मूलाचार आदि 84 ग्रन्थों की रचना सौरसेनी प्राकृत भाषा में करके जैनदर्शन की महती ख्याति विश्व में अमर की है। आपने षट्खण्डागम के त्रिखण्डों पर परिकर्म नामक करुणानुयोग के ग्रन्थ का प्रणयन भी किया है।
इससे सिद्ध होता है कि आ. कुन्दकुन्द, दिगम्बर जैनाचार्यों में आद्यग्रन्थकर्ता हैं एवं श्रुतयुग संस्थापक महान् आचार्य हैं। संभवत: इनको इसी परमश्रेय के कारण मंगलश्लोक में श्री गौतम गणधर के पश्चात् नमस्कार किया गया है। क्षेत्रदर्शन :
कुन्दाद्रि शिखर एक प्राकृतिक कुण्ड है जो कि पादुकाश्रय के निकट ही हैं। इसको पापनाशिनी सरोवरी भी कहते हैं ।इसका जल पेय एवं मधुर है। यहाँ पर दो गुफाएं भी है । कुण्ड के किनारे एक प्राचीन
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