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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ __ समय की गति के अनुसार इस आर्यक्षेत्र में अनेकों देशों, नगरों तथा ग्रामों की रचना होती रही और प्राचीन देशों नगरों आदि का विध्वंश भी होता गया। यत: इस विश्व की दशा परिवर्तनशील है। वर्तमान में वे देशनगर आदि परिवर्तितरूप में है, और अनेकों का अस्तित्व भी नहीं पाया जाता है। उनमें से कुछ के नाम वही हैं, कुछ परिवर्तित हैं और कुछ विनष्ट हो गये है। राष्ट्रों की राष्ट्रीयता
___ राष्ट्रों की स्थापना होने पर उनमें राष्ट्रीयता का होना भी राष्ट्र की सत्ता, उन्नति और शान्तिपूर्ण व्यवस्था के लिये अत्यावश्यक है । यह राष्ट्रीयता राष्ट्र का प्राण है। नीतिवाक्यामृत में कहा गया है
"अन्योऽन्यरक्षक: खन्याक रद्रव्यनागधनवान् नातिवृद्धनातिहीनग्रामो बहुसारविचित्रधान्यहिरण्यपण्योत्पत्तेरदेवमातृक: पशुमनुष्यहित: श्रेणिशूद्रकर्षकप्राय: इति जनपदस्य गुणा: (जनपदसमुद्देश -सू0 8)"
____ अर्थात- राष्ट्र के गुण (राष्ट्रीयता) इस प्रकार हैं (1) राजा देश का रक्षक और देश राजा का रक्षक हो। (2) सुवर्ण आदि धातुओं की तथा गन्धक नमक आदि द्रव्यों की खानों से युक्त हो। (3) रुपया आदि धन तथा हाथी आदि पशु धन से परिपूर्ण हो । (4) न अत्याधिक और न अति कम जनसंख्या पूर्ण ग्रामों तथा नगरों से शोभित हो। (5) उत्तम पदार्थ, अन्न-सुवर्ण और व्यापार योग्य वस्तुओं से परिपूर्ण हो। (6) मेद्यजल की अपेक्षाहीन कृषिवाला हो अर्थात् रहट, विद्युत्पम्प आदि यन्त्रों से कृषि कार्य वाला हो, (7) मानव तथा पशुओं को सुखदायक हो। (8) कलाकार, कारीगर, श्रमिक, कृषक और विद्वान व्यक्तियों से शोभित हो । राज्य की परिभाषा
राष्ट्र की एकता, व्यवस्था, रक्षा और उन्नति का न्याय नीतिपूर्ण राज्य एक प्रबल आधार है। राज्य सार्वभौमिक होता है। “राज्ञ पृथ्वीपालनोचितं कर्म राज्यम्" (नीतिवा पृ. 63 सू. 4)
अर्थात- राजा के पृथ्वी की सुरक्षा एवं उन्नति के योग्य कर्म (सन्धि विग्रह यान आसन संश्रय द्वैधीभाव) को राज्य कहते हैं। श्री ऋषभदेव ने राज्य का आविष्कार करते हुए स्वयं राष्ट्र का शासक बनकर सर्वप्रथम न्यायपूर्णराज्य का आदर्श उपस्थित किया था। उन्होंने अपने राज्य में सुरक्षा शान्ति न्यायविधि (कानून), स्वास्थ्य, शिक्षा, उद्योग, आवागमन, व्यापार, समाज कल्याण, पशुपालन, वनस्पति विज्ञान आदि के आविष्कार द्वारा कृत युग का वातावरण प्रारम्भ कर दिया था। इसके अतिरिक्त उन्होंने समाज में शासन करने योग्य मानवों को क्षत्रिय वर्ग, अर्थविद्या एवं कृषिकला में प्रवीण मानवों को वैश्य वर्ग और श्रम तथा शिल्पकला में प्रवीण मानवों को प्रजा वर्ग केनाम से विभाजित कर उनको अपने कर्तव्यों पर नियुक्त कर दिया था। अपना राज्यकाल समाप्त कर ऋषभदेव ने उत्तर भारत का राज्य श्री भरत चक्री को और दक्षिण भारत का राज्य श्री बाहुबली को दे दिया था । चक्रेश भरत ने धार्मिक क्रिया काण्ड एवं शिक्षण देने में प्रवीण विद्वान् व्यक्तियों को ब्राह्मण वर्ग के रुप में घोषित किया और उनको धर्म शिक्षण के कार्य में नियुक्त किया । राष्ट्र की
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