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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ उदीयमान उस कर्मयुग में मानवों के निवासगृह, शिक्षा आदि सकल व्यवस्थाओं को सम्पन्न करने के लिये श्रीऋषभदेव ने आर्यक्षेत्र में नगर, देश एवं राष्ट्रों की व्यवस्था की। उनमें सर्वप्रथम भारत था जिसका नामकरण स्वकीय ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम से किया गया।
तन्नाम्ना भारतं वर्षमिति हासीज्जनास्पदम् । हिमाद्रेरासमुद्राच्च क्षेत्रं चक्रभृतामिदम् ।।१५९।।
आदिपुराण पर्व १५ अर्थात्-श्रीऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र प्रथम चक्री भरत के नाम से, आर्यजनों के रहने का स्थान यह भारतवर्ष प्रसिद्ध हुआ है जो हिमालय से लेकर दक्षिणादि दिशाओं में तीनों ओर समुद्र से वेष्टित है। यह चक्रवर्तियों का क्षेत्र है।
अग्नीध्रसूनो भेस्तु ऋषभोऽभूत्सुतो द्विज: । ऋषभाद् भरतो जने वीर: पुत्रशताद्वरः ॥३९॥ हिमा दक्षिणं वर्ष भरताय पिता ददौ । तस्मात्तु भारतं वर्षे तस्य नाम्ना महात्मनः ॥४१॥
-मार्कण्डेयपुराण अ0 ५० अर्थात्-नाभिराज के पुत्र ऋषभदेव हुए और ऋषभदेव के पुत्र भरत अपने शत भ्राताओं में ज्येष्ठ थे। ऋषभदेव ने हिमालय के दक्षिण का क्षेत्र भरत को दिया । इस कारण उस वीर के नाम से देश का नाम 'भारतवर्ष प्रसिद्ध हुआ।
नाभे: पुत्रश्च ऋषभः, ऋषभाद् भरतोऽभवत् । तस्य नाम्ना त्विदं वर्ष,भारतं चेति कीत्यंते ॥५७॥
(विष्णु पुराण द्वि. अंश अ.1) तत्पश्चात् श्रीऋषभदेव ने अनेक देशों की स्थापना की। जिनमें कुछ प्रसिद्ध नाम उल्लेखनीय हैंसुकौशल, कुरुजांगज, अंग, वंग पुडू, उण्ड, अश्मक, रम्यक, कुरु, काशी, कलिंग, समुद्रक, काश्मीर उशीनर, आवर्त, वत्स, पञ्चाल, मालव, दशार्ण, कच्छ, मगध, विदर्भ, करहाट महाराष्ट्र, आभीर, कोंकण, वनवास, आन्ध्र, कर्णाट, कोशल चोल, केरल, दारु, अभिसार, सौवीर, शूरसेन, अपरान्त , विद्रेह, सिन्धु, गान्धार, यवन, चेदि, पल्लव, कम्बोज, आरद, वाल्मीक, तुरुष्क, शक, मरु,केकय इत्यादि । (अहिंसावाणी ऋषभ वि0 पृ० १०)
___ नगरी या नगरों के कुछ नाम- मथुरा माया काशी काञ्ची श्रावस्ती कोशाम्बी वाराणसी चन्द्रपुरी काकन्दीपुर भद्रिलपुर सिंहपुर चम्पापुर कम्पिलापुरी रत्नपुर हस्तिनापुर नागपुर मिथिला राजगृही सौरीपुर कुण्डलपुर ताल पुरिमतालपुर इत्यादि ।
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