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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ जैण विणा लोगस्सति, विवहारो सव्वाहनणिव्वडइ । तस्स भुवणेक्क गुरुणों, णमो अणेगंत - वायस्स ॥
_(सन्मतितर्क प्रकरण : सिद्धसेनदिवाकर: अ.3/68) जिस अनेकान्त के बिना लौकिक व्यवहार सुलभ रीति से अच्छी तरह नहीं चल सकता है, उस लोक के मुख्य गुरु अनेकान्तवाद को नमस्कार है।
किसी मानव की वार्ता को सुनकर सहसा विरोध नहीं करना चाहिये, किन्तु अपेक्षाकृत विचार करके ही उस वार्ता का हेय, उपादेय एवं अपेक्षा रूप निर्णय करना चाहिये । अन्यथा विचार या निर्णय करने पर कलह आगे - आगे दौड़ता है। किसी प्रबुद्ध व्यक्ति के उपदेश को सुनकर, किसी लेखक की रचना को पढ़कर विवक्षा या अपेक्षा से ही उसका विचार करना चाहिये । कारण कि विवक्षाकृत विषय प्रतिपादन विवाद या विरोध रहित होता है, अन्यथा पद - पद पर विरोध होता है।
हमारा कथन ही सत्य है किन्तु आपका कथन असत्य है यह हठवाद उपयोगी नहीं है किन्तु विरोध का उत्पादक है । इसलिये स्यावाद या अपेक्षाकृत शैली से जीवन का विकास, पास्परिक मैत्री, सहयोग, समाजसुधार , विवाह कार्य , सामाजिक - आदान - प्रदान, धार्मिक महोत्सव, गृहस्थाश्रम संचालन, व्यापार, परोपकार, भोजन, चिकित्सा, व्यायाम, विद्याध्ययन आदि सभी कार्य द्रव्य क्षेत्र काल भाव के विचार पूर्वक श्रम से करना चाहिये।
अपिच निमित्त उपादान, निश्चयव्यवहारनय, भाग्य, पुरुषार्थ, पुण्यपाप, धर्म - अधर्म, द्रव्य गुण पर्याय विषयक, सामाजिक विवाद अपेक्षाकृत शैली से निरस्त किये जा सकते हैं।
___ अपिच - साम्प्रदायिकद्वेष, सामाजिक द्वेष, शारीरिक वर्णद्वेष, भाषाविरोध, प्रान्तविरोध, पदाधिकारविरोध आदि अनैतिक तत्वों को स्याद्वादशस्त्र से खण्डित कर राष्ट्रीय क्षेत्र में परमशान्ति को स्थापित करना नितान्त आवश्यक है।
एक समय अकबर बादशाह ने विनोद के प्रसंग में ब्लेकबोर्ड पर चाक से लम्बी रेखा खींचकर बीरबल से कहा - यदि तुम वास्तव में बुद्धिमान हो, तो इस वोर्ड की लम्बी लाइन को बिना मिटाये ही छोटी कर दो । बीरबल ने बड़ी चतुराई से उस लाईन के नीचे एक बड़ी लाईन खींचकर बादशाह को उत्तर दे दिया बादशाह बहुत प्रसन्न हुआ। अर्थात् नीचे की बड़ी लाईन की अपेक्षा बादशाह की लाईन बिना मिटाये ही छोटी हो गई ।यह स्यावाद (अपेक्षाकृत) शैली का ही प्रभाव है। अहिंसाक्षेत्र में अनेकान्तवाद का प्रभाव :
अनेकान्तवाद से पदार्थ के अनेक धर्मो (गुणों) का ज्ञान होता है । आत्मा के अनेक गुणों में अहिंसा भी एक गुण है । क्रोध का आवेग, अभिमान, मायाचार, लोभ, तृष्णा, असत्य, असंयम इन दुरभावों से अपने या अन्य किसी प्राणी के, ज्ञानादिभावप्राणों का एवं शरीर आदि द्रव्यप्राणों का घात करना हिंसा कहा जाता है। हिंसा का परित्याग कर क्षमा, विनय सदाचार, विशुद्धि, संयम, सत्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य आदि गुणों का मनसा वाचा कर्मणा आचरण करना अहिंसा कहा जाता है। अहिंसा की तीन कक्षाएं होती हैं -(1) सामान्य
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