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कृतित्व/हिन्दी
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ (4) स्यात् अवक्तव्यं पुस्तकं - पुस्तक है और नहीं - इन दो धर्मो को एक साथ नहीं कह सकते है
अतएव अवक्तव्य है, शब्दों द्वारा क्रम से ही कहा जा सकता है। (5) स्यात् पुस्तकं अवक्तव्यं अस्ति - यद्यपि पुस्तक स्वद्रव्यादि चतुष्टय की अपेक्षा मौजूद है तथापि
उसके अनेक गुण एक साथ शब्दों से नहीं कहे जा सकते है अत: अवक्तव्य है। (6) स्यात् अवक्तव्यं नास्ति -"यद्यपि अन्य द्रव्य के द्रव्यादिचतुष्टय की अपेक्षा नहीं है यथापि उसके
निषेध रूप धर्म शब्दों से एक साथ नहीं कहे जा सकते , अत: अवक्तव्य है। (7) स्यात् पुस्तकं अस्ति नास्ति अवक्तव्यम् -
यद्यपि पुस्तक स्वपरद्रव्यादि चतुष्टय की अपेक्षा उभय (अस्ति - नास्तिरूप) रूप है तथापि पुस्तक के सद्भाव और निषेधरूप धर्मो को शब्दों के द्वारा एक साथ नहीं कहा जा सकता है अत: वस्तु उभयरूप होकर भी अवक्तव्य है। इसी प्रकार वस्तु के अनेक धर्मो में प्रत्येक धर्म का वर्णन सात-सात प्रकार से हो सकता है। अत: अनेक धर्मो की अपेक्षा अनेक सप्तभंगी सिद्ध हो जाती है। जिज्ञासु ज्ञानीजनों के वस्तुस्वरूप को जानने की इच्छा सात प्रकार से होती है अत: सात प्रश्नपूर्वक सात ही भंग कहे गये हैं, शास्त्रों में ।
सप्तभंगी के मूल में दो प्रकार के होते हैं - . (1) प्रमाणसप्त भंगी।
(2) नयसप्तभंगी। (1) उदाहरण - अनन्तधर्मात्मक आत्मा, स्वद्रव्यादि चतुष्टय की अपेक्षा है और पर द्रव्यादिचार की अपेक्षा नहीं है। अनन्त धर्मो की अपेक्षा अवक्तव्य है इत्यादि सात प्रकार। (2) नयसप्त भंगी - घड़ी स्वद्रव्यादि चतुष्टय की अपेक्षा - विद्यमान है और अन्य द्रव्य के द्रव्य आदि चार की अपेक्षा विद्यमान नहीं है, इत्यादि ।
अथवा द्रव्यनय की अपेक्षा घड़ी एक है और पर्याय (व्यवहार) नय की अपेक्षा घड़ी अनेक है इत्यादि । अथवा द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा वस्त्र नित्य है और पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा वस्त्र अनित्य है आदि।
अथवा निश्चयनय की अपेक्षा सूर्य अवाच्य है और व्यवहारनय की अपेक्षा सूर्यवाच्य (शब्दों द्वाराकथनयोग्य) है
अथवा - द्रव्यदृष्टि से एक पुरुष सामान्य है और पर्यायदृष्टि से वह पुरुष क्षत्रिय है, इत्यादि।
उक्त धर्मो के नयविवक्षा से सात - सात भंग हो जाते हैं इसलिये नयसप्तभंगी कहा जाता है। स्यात् पद की व्याख्या :
संस्कृत व्याकरण में “स्यात् “शब्द एक अव्यय है, “कथंचित्" उसका पर्यायशब्द है, जिसका अर्थ होता है - मुख्य - विवक्षा, अपेक्षा,दृष्टिकोण, नयापेक्षा, मुख्यलक्ष्य, वक्ता के मुख्यलक्ष्य का वाचक और गौण तत्व का द्योतक । किन्तु “स्यात्" इस पद का संभव, कदाचित् सन्देह, अनुमानत: अनिश्चय और शायद
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