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व्यक्तित्व
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ क्यों न हों। अनेक पदों से विभूषित होने पर भी कभी न ही हर्षातिरेक में देखा, न ही कभी विषाद या क्षोभ के क्षण, उनके मुख पर परिलक्षित होते थे। बस एक मंद सी मुस्कान साम्य भाव की परिलक्षित होती थी । सदैव ही समता भाव पूर्ण बात ही मुख से निकलती थी । परम संतोष धैर्य, साम्य भाव का गुण तो आत्मा में कूट कूट कर भरा था।
__परिवारिक पृष्ठ भूमि में पाँचो बेटियों में से सबसे छोटी बेटी ब्रह्मचारिणी किरण दीदी ने जैसे पिताजी की सेवा का संकल्प का पालन करते हुए पंडित जी के पूरे जीवन में धर्म एवं संयम, व्रत, स्वाध्यायी जीवन की परिपूर्णता में सहयोग किया । पूज्य पंडित जी आजीवन अनवरत् स्वाध्याय एवं लेखन में रत एवं लीन रहते थे। किसी से भी संक्षिप्त वार्ता और अपनी बात मध्यम स्वर में कहना सहज गुण था।
महान महान पदवियों के धारक एवं महान विद्वान जिन्होंने बड़े बड़े ग्रंथो एवं शोधग्रंथ की रचना की। एक चिंतन शील स्वाध्यायी एवं परम संयम धारण करने वाले पंडित जी सरल स्वभावी थे।
उनके निज निवास पर किरण दीदी के द्वारा दोपहर व रात्रि में आध्यात्मिक ग्रंथो का वाचन होता था। अत: सभी महिलायें नित्य वाचन में जाकर धर्मलाभ लेती है । अत: प्रतिदिन स्वाध्याय में कोई कठिन प्रश्न आ जाता जो समझ में न आता था तो पंडित जी से पूछते थे तो पंडित जी सहज, सरलता से शंका का समाधान करते थे। पूज्य पंडित जी का जीवन तो अनेकानेक गुणों से भरा था । आध्यात्मिक ज्ञान की प्रतिभा, विद्वता का अतुलनीय भंडार, उनकी अनुपम लेखनी द्वारा प्रभावित हुआ है। जिसकी सुगंध युगों युगों तक इस संसार में विद्यमान रहेगी।
श्रद्धेय पंडित जी के लिए विनयांजलि अर्पित कर उनके अनुकरणीय जीवन को आदर्श मान कर मैं भी अपने जीवन को धन्य समझूगी।
सागर के मोती (मेरे जन्म दाता पूज्य पिताजी)
श्रीमती मनोरमा जैन सिरोंज म. प्र. मैं तो अपने पिताजी को एक मोती के रूप में देखती हूँ। जैसे वास्तवित मोती का मिलना बहुत दुर्लभ होता है, ऐसे ही मेरे पिताजी जैसे पिता का मिलना भी बहुत कठिन है। मोती तो सागर के तल में होता है वह भी सीप के अंदर बंद होता है वैसे ही मेरे पिताजी के अंतर में ज्ञान रूपी मोती छिपा हुआ था, वे अंतरंग रूपी सीप को खोलकर सबको मोती देते थे, कभी कभी विद्यालय में और कभी कभी धर्म सभा में ज्ञान रूपी
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